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लेश्या-कोश
३७९
.९० सलेशी जीव का आठ पदों से विवेचन
[यहाँ पर सलेशी जीव का निम्नलिखित आठ पदों की अपेक्षा से विवेचन हुआ है---यथा-(१) भेद, (२) उपभेद, (३) श्रेणी तथा क्षेत्र की अपेक्षा से विग्रह गति, (४) स्थान ( उपपातस्थान, समुद्घातस्थान, स्वस्थान ), (५) कर्म प्रकृति की सत्ता, बंधन, वेदन, (६) कहाँ से उपपात, (७) समुद्घात, (5) तुल्य अथवा भिन्न स्थिति की अपेक्षा तुल्य विशेषाधिक अथवा भिन्न विशेषाधिक कर्म का बंधन । लेकिन भगवती सूत्र के ३४वें शतक में केवल एकेन्द्रिय जीव का विवेचन है, अन्य जीवों का इन आठ पदों की अपेक्षा से विवेचन नहीं मिलता है।]
'६०१ सलेशी एकेन्द्रिय जीव का आठ पदों से विवेचन___ कइविहा णं भंते ! कण्हलेस्सा एगिंदिया पन्नत्ता ? गोयमा ! पंचविहा कण्हलेस्सा एगिदिया पन्नत्ता, भेदो चउक्कओ जहा कण्हलेस्सएगिदियसए जाव वणस्सइकाइय त्ति ।
कण्हलेस्सअपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले० ? एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहियउद्देसओ जाव 'लोगचरिमंते' त्ति । सव्वत्थ कण्हलेस्सेसु चेव उववाएयव्यो।
कहिं गं भंते ! कण्हलेस्सअपज्जत्ताबायरपुढविक्काइयाणं ठाणा पनत्ता ? (गोयमा ! ) एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहियउद्देसओ जाव तुल्लट्ठिइय त्ति।
एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमं सेढिसयं तहेव एक्कारस उहेसगा भाणियव्वा ।
एवं नीललेस्सेहि वि तइयं सयं । काऊलेस्सेहि वि सयं । एवं चेव चउत्थं सयं ।
-भग० श ३४ । श २ से ४ । पृ० ६२४ कृष्णलेशी एकेन्द्रिय पाँच प्रकार के अर्थात् कृष्णलेशी पृथ्वीकायिक यावत् कृष्णलेशी वनस्पतिकायिक होते हैं। इनमें प्रत्येक के पर्याप्तसूक्ष्म, अपर्याप्तसूक्ष्म, पर्याप्तबादर, अपर्याप्तबादर चार भेद होते हैं । ( देखो भग० श ३३ । श २ )
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