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लेश्या-कोश
३५७ पढमो तइओ पंचमओ य सरिसगमा, सेसा अट्ट सरिसगमगा। नवरं चउत्थे छ8 अट्ठमे दसमे य देवा न उववज्जंति, तेऊलेस्सा नत्थि ।
-भग० श ३५ । श १ । उ ११ । सूह । पृ० ६२६ पहले, तीसरे, पाँचवें उद्देशक का एक सरीखा गमक होता है तथा बाकी आठ का एक सरीखा गमक होता है। चौथे, छट्ठ, आठवें तथा दशवें गमक में कृष्ण-नील-कापोतलेश्या होती है, तेजोलेश्या नहीं होती है। बाकी के उद्देशकों में कृष्ण-नील-कापोत-तेजो-ये चारों लेश्याएं होती है।
नोट-यद्यपि उपरोक्त पाठ से छ8 उद्दशक में तेजोलेश्या नहीं ठहरती है है लेकिन छठे उद्दशक में जो भुलावण है उसके अनुसार इस उद्देशक में चारों लेश्याएं होनी चाहिये । प्रवीण व्यक्ति इस पर विचार करें।
कण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मएगिदिया णं भंते ! कओ उववज्जति० ? गोयमा! उववाओ तहेव, एवं जहा ओहिउद्देसए । नवरं इमं नाणत्तं ते णं भंते ! जीवा कण्हलेस्सा ? हंता कण्हलेस्सा।
ते णं भंते ! 'कण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मएगिदिय' त्ति कालओ केवच्चिरं हइ ? गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं सम यं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं । एवं ठिईए वि। सेसं तहेव जाव अणंतखुत्तो। एवं सोलस वि जुम्मा भाणियव्वा ।
पढमसमयकण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मएगिदिया णं भंते ! कओ उववज्जति ? जहा पढमसमयउद्देसओ। नवरं ते णं भंते ! जीवा कण्हलेस्सा ? हंता कण्हलेस्सा, सेसं तं चेव ।
एवं जहा ओहियसए एकारस उद्देसगा भणिया तहा कण्हलेस्ससए वि एकारस उद्देसगा भाणियन्वा। पढमो तइओ पंचमो य सरिसगमा, सेसा अह वि सरिसगमा। नवरं चउत्थ-छट्ट-अट्ठमदसमेसु उववाओ नत्थि देवस्स । __ एवं नीललेस्सेहि वि सयं कण्हलेस्ससयसरिसं, एक्कारस उद्देसगा तहेव ।
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