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लेश्या- कोश
नवरं वणस्सइकाइया जाव असंखेज्जा वा अनंता वा उववज्जंति, सेसं एवं चैव । ( सू १४ )
( मणुस्सा ) जइ आयजसं उवजीवंति किं सलेस्सा अलेस्सा ? गोमा ! सलेसा वि अलेस्सा वि । जइ अलेस्सा किं सकिरिया, अकिरिया ? गोयमा ! नो सकिरिया, अकिरिया । जइ अकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिज्यंति, जाव अंत करेंति ? हंता सिज्झति, जाव अंत करेंति । जइसलेस्सा किं सकिरिया, अकिरिया ? गोयमा ! सकिरिया, नो अकिरिया । जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झन्ति, जाव अंतं करेंति ? गोयमा ! अत्थेगइया तेणेव भवग्गहणेणं सिज्यंति जाव अंतं करेन्ति, अत्थेगइया नो तेणेव भवग्गहणेणं सिज्यंति, जाव अंतं करेन्ति । जइ आयअजसं उवजीवन्ति किं सलेस्सा, अलेस्सा ? गोयमा ! सलेस्सा, नो अलेस्सा जइ सलेस्सा किं सकिरिया, अकिरिया ? गोयमा ! सकिरिया, नो अकिरिया । जइ किरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिज्यंति, जाव अंतं करेन्ति ? नो इणह समट्ठ े । ( सू १६ से २३ )
वाणमंतरजोइसिय वैमाणिया जहा नेरइया ।
—— भग० श ४१ । उ १ । सु ११ से २३ । पृ० ६३५-३६
राशियुग्म में जो कृतयुग्म राशि रूप नारकी आत्म असंयत का आश्रय लेकर जीते हैं वे सलेशी हैं, अलेशी नहीं हैं तथा वे सलेशी नारकी क्रियावले हैं, क्रिया रहित नहीं हैं । वे सक्रिय नारकी उसी भव में सिद्ध नहीं होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त नहीं करते हैं ।
कृतयुग्म राशि असुरकुमारों के विषय में जैसा नारकी के विषय में कहा वैसा ही निरवशेष कहना चाहिए । इसी प्रकार यावत् तिर्यंच पंचेन्द्रिय तक समझना परन्तु वनस्पतिकायिक जीव असंख्यात अथवा अनन्त उत्पन्न होते हैं ।
जो कृतयुग्म राशि रूप मनुष्य आत्मसंयम का आश्रय लेकर जीते हैं वे सलेशी भी हैं, अलेशी भी हैं । यदि वे अलेशी हैं तो वे क्रियावाले नहीं हैं, क्रिया रहित हैं । तथा वे अक्रिय मनुष्य उसी भव में सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखो का अन्त करते हैं । यदि वे सलेशी हैं तो वे क्रिया वाले हैं, क्रिया रहित नहीं है तथा उन
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