________________
लेश्या - कोश
३६१
बारह शतक कहने चाहिए । लेकिन अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की, उत्कृष्ट तीन गाउ ( कोश ) प्रमाण की तथा स्थिति जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट उनचास रात्रिदिवस की कहनी चाहिए ।
८७-४ सलेशी महायुग्म चतुरिन्द्रिय जीव-
चरिदिएहि वि एवं चेव बारस सया कायव्वा । नवरं ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई । ठिई जन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा | सेसं जहा बेई दियाणं ।
-- भग० श ३८ | पृ० ६३१
महायुग्म द्वीन्द्रिय शतक की तरह महायुग्म कहने चाहिए लेकिन अवगाहना जघन्य अंगुल के चारगाउ ( कोश ) प्रमाण की ; स्थिति जघन्य एक कहनी चाहिए | शेष पद सर्व द्वीन्द्रिय की तरह कहने चाहिए ।
चतुरिन्द्रिय के भी बारह शतक असंख्यातवें भाग की, उत्कृष्ट समय की, उत्कृष्ट छः मास
८७५ सलेशी महायुग्म असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव
कडजुम्मकडजुम्मअसन्निपंचिंदिया णं भंते! कओ उववज्जं ति० ? जहा बेइ दियाण तहेव असन्निसु वि बारस सया कायव्वा । नवरं ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलरस असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्मं । संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पुव्वोडिपुहत्तं । ठिई जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी, सेसं जहा बेई दियाणं ।
- भग० श ३६ । पृ० ६३१
कृतयुग्म कृतयुग्म द्वीन्द्रिय की तरह कृतयुग्म कृतयुग्म असंज्ञी पंचेन्द्रिय के भी बारह शतक कहने चाहिए । लेकिन अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की, उत्कृष्ट एक हजार योजन की ; काय स्थिति जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट प्रत्येक पूर्व क्रोड की तथा आयुस्थिति जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट पूर्व क्रोड की होती है । बाकी पद सर्व द्वीन्द्रिय शतक की तरह कहना चाहिए ।
*८७६ सलेशी महायुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव—
कडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचिंदिया णं भंते ! x x x ( कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ ) ? कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा | xxx एवं सोलससु वि जुम्मे भाणियवं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org