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लेश्या-कोश
___ कृष्णलेशी कृतयुग्म-कृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं इत्यादि प्रश्न ? जैसा कृतयुग्म-कृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय उद्देशक में कहा वैसा ही यहाँ जानना चाहिए। लेकिन बंध, वेद, उदय, उदीरणा, लेश्या, बंधक, संज्ञा, कषाय तथा वेदबंधक-इन सबके सम्बन्ध में जैसा कृतयुग्म-कृतयुग्म द्वीन्द्रिय के पद में कहा वैसा ही कहना चाहिए। कृष्णलेशी जीव तीनों वेद वाले होते हैं, अवेदी नहीं होते हैं। कायस्थिति जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट साधिक अन्त. मुहूर्त तैतीस सागरोपम की होती है। इसी प्रकार स्थिति के सम्बन्ध में जानना चाहिए लेकिन स्थिति अन्तमुहूर्त अधिक न कहना चाहिए। बाकी सब प्रथम उद्देशक में जैसा कहा वैसा ही यावत् 'अणं तखुत्तो' तक कहना चाहिए। इसी प्रकार सोलह युग्मों में कहना चाहिए ।
. प्रथम समय कृष्णलेशी कृतयुग्म-कृतयुग्म संज्ञी पंचेन्द्रिय के सम्बन्ध में जैसा प्रथम समय के संशी पंचेन्द्रिय के उद्देशक में कहा वैसा ही कहना चाहिए लेकिन वे जीव कृष्णलेशी होते हैं। इसी प्रकार सोलह युग्मों में कहना चाहिए। इस प्रकार कृष्णलेश्या शतक में भी ग्यारह उद्देशक कहना चाहिए। पहला, तीसरा, पाँचवाँ.-ये तीन उद्दशक एक समान गमक वाले हैं, शेष आठ उद्द शक एक समान गमक वाले हैं।
इसी प्रकार नीललेश्या वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में महायुग्म शतक कहना चाहिए लेकिन कायस्थिति जघन्य एक समय, उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम की होती है। इसी प्रकार स्थिति के सम्बन्ध में जानना चाहिए। पहला, तीसरा, पाँचवाँ-ये तीन उद्द शक एक समान गमक वाले हैं, शेष आठ उद्देशक एक समान गमक वाले हैं।
इसी प्रकार कापोतलेश्या वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में महायुग्म शतक कहना चाहिए लेकिन कायस्थिति जघन्य एक समय, उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम की होती है। इसी प्रकार स्थिति के सम्बन्ध में जानना चाहिए। पहला, तीसरा, पाँचवाँ-ये तीन उद्देशक एक समान गमक वाले हैं शेष आठ उद्देशक एक समान गमक वाले हैं।
इसी प्रकार तेजोलेश्या वाले जीवों के सम्बन्ध में महायुग्म शतक कहना चाहिए । कायस्थिति जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम की होती है। इसी प्रकार स्थिति के सम्बन्ध में जानना चाहिए। लेकिन नोसंज्ञा उपयोग वाले भी होते हैं । पहला, तीसरा, पाँचबाँ
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