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लेश्या-कोश
३४३ अस्तु सभी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय योनिक जीव समक्रियावाले नहीं है। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिक जीव तीन प्रकार के होते हैं, यथा-सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सस्यगमिथ्यादृष्टि ( मिश्रदृष्टि ) उनमें जो सम्यग्दृष्टि है वे दो प्रकार के हैं, यथा-असंयत और संयतासंयत । उनमें जो संयतासंयत है उन्हें तीन क्रियायें लगती है-आरम्भिकी, पारिग्राहकी और मायाप्रत्यया। उनमें जो असंयत है उन्हें अप्रत्याष्यानी सहित चार क्रियाए लगती है। जो मिथ्यादृष्टि है तथा सम्यरमिथ्यादृष्टि है उन्हें पांचों क्रियाए लगती है।।
११–मणुस्सादीणं समाहार-समसरीरादि-पदं
मणुस्सा' णं भंते ! सव्वे समाहारा ? सव्वे समसरीरा ? सव्वे समुस्सासनीसासा ?
गोयमा ! नो इण8 सम? ।
से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-मणुस्सा नो सव्वे समाहारा ? नो सव्वे समसरीरा ? नो सव्वे समुस्सासनीसासा ?
गोयमा! मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-महासरीरा य, अप्पसरीरा य। तत्थ णं जे ते महासरीरा ते बहुतराए पोग्गले आहारैति, बहुतराए पोग्गले परिणामेंति, बहुतराए पोग्गले उस्ससंति, बहुतराए पोग्गले नीससंति ; आहच्च आहारति, आहच्च परिणामेंति, आहच्च उस्ससंति, आहच्च नीससंति ।
तत्थ णं जे ते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पोग्गले आहारेंति, अस्पतराए पोग्गले परिणामेंति, अप्पतराए पोग्गले उस्ससंति, अध्पतराए पोग्गले नीससंति ; अभिक्खणं आहारति, अभिक्खणं परिणामेंति, अभिक्खणं उस्ससंति, अभिक्खणं नीससंति । से तेणणं गोयमा! एवं वुच्चइ-मणुस्सा नो सव्वे समाहारा, नो सम्बे समसरीरा, नो सव्वे समुस्सासनीसासा ।। १. सं० पाo-मणुस्सा जहा णेरइया नाणत्तं जे महासरीरा ते बहुतराए पोग्गले
आहरति आहच्च आहरति । जे अप्पसरीरा ते अप्पतराए पोग्गले आहारति अभिक्खणं आहरेंति सेसं जहा नेरइयाणं जाव वेयणा ।
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