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लेश्या-कोश सलेशी कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी जीव ( एकवचन ) कदाचित् आहारक, कदाचित् अनाहारक होते हैं। इसी प्रकार दंडक के सभी जीवों के विषय में जानना चाहिए। जिसके जितनी लेश्या हो उतने पद कहने चाहिए।
. सलेशी जीव ( बहुवचन )-औधिक तथा एकेन्द्रिय जीव में एक भंग होता है, यथा-आहारक भी होते हैं, अनाहारक भी होते हैं। क्योंकि ये दोनों प्रकार के जीव सदा अनेकों होते हैं। इनके सिवाय अन्यों में तीन भंग होते हैं । यथा-(१) सर्व आहारक, (२) अनेक आहारक तथा अनेक अनाहारक होते हैं, (३) अनेक आहारक, अनेक अनाहारक होते हैं । कृष्णलेशी, नीललेशी तथा कापोत लेशी जीव (बहुवचन) को भी सलेशी जीव (बहुवचन) की तरह जानना चाहिए । तेजोलेशी पृथ्वीकायिक, अपकायिक तथा वनस्पतिकायिक जीव ( बहुवचन ) में छः भंग होते हैं । यथा--(१) सर्व आहारक, (२) सर्व अनाहारक, (३) एक आहारक तथा एक अनाहारक, (४) एक आहारक तथा अनेक अनाहारक, (५) अनेक. आहारक तथा एक अनाहारक, (६) अनेक आहारक तथा अनेक अनाहारक । अवशेष तेजोलेशी जीव ( बहुवचन ) के तीन भंग जानना चाहिए । पद्मलेशी, शुक्ललेशी जीवों-औधिक जीव, तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य, वैमानिक देवों में तीन भंग जानना चाहिए।
अलेशी जीव, अलेशी मनुष्य, अलेशी सिद्ध (एकवचन तथा बहुवचन) की अपेक्षा आहारक नहीं हैं, अनाहारक होते हैं ।
'८५ सलेशी जीव के भेद- . '८५.१ दो भेद--
सलेसे णं भंते ! सलेस्सेत्ति पुच्छा ? गोयमा! सलेम्से दुविहे पन्नते । तं जहा-अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए।
-पण्ण० प १८ । वा ८ । सू । पृ० ४५६ सलेशी जीव सलेशीत्व की अपेक्षा से दो प्रकार के होते हैं-(१) अनादि अपर्यवसित, तथा (२) अनादि सपर्यवसित । '८५.२ छः भेद
कृष्णादि लेश्या की अपेक्षा से सलेशी जीव के छः भेद भी होते हैं। यथाकृष्णलेशी, नीललेशी, कापोतलेशी, तेजोलेशी, पद्मलेशी तथा शुक्ललेशी ।
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