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लेश्या-कोश रयणप्पभाए, सेसं तं चेव । रयणप्पभापुढविकाऊलेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उववज्जति०? एवं चेव । एवं सक्करप्पभाए वि, एवं वालुयप्पभाए वि। एवं चउसु वि जुम्मेसु । नवरं परिमाणं जाणियव्वं जहा कण्हलेस्सउद्देसए, सेसं तं चेव ।
-भग० श ३१ । उ २ से ४ । पृ० ६११-१२ कृष्णलेशी क्षुद्रकृतयुग्म नारकी का उपपात प्रज्ञापना सूत्र के व्युत्क्रांतिपद से जानना चाहिए। वे एक समय में चार अथवा आठ अथवा बारह अथवा सोलह अथवा संख्यात अथवा असंख्यात उत्पन्न होते हैं तथा वे किस प्रकार उत्पन्न होते हैं आदि अवशेष के सात पद से जहानामए पवए x x x जाव नो परप्पयोगेणं उववज्जंति ( भग० श २५ । उ ८) से जानना चाहिए। धूमप्रभा पृथ्वी, तमप्रभा पृथ्वी तथा तमतमाप्रभा पृथ्वी के कृष्णलेशी क्षद्रकृतयुग्म नारकी के सम्बन्ध में कहाँ से उत्पन्न, एक समय में कितने उत्पन्न तथा किस प्रकार उत्पन्न आदि नौ पदों के सम्बन्ध में ऐसा ही कहना चाहिए, परन्तु उपपात सर्वत्र प्रज्ञापना सूत्र के व्युत्क्रांतिपद के अनुसार कहना चाहिए।
कृष्णलेशी क्षद्रव्योज नारकी के सम्बन्ध में नौ पदों में ऐसा ही कहना चाहिए, परन्तु एक समय में तीन अथवा सात अथवा ग्यारह अथवा पन्द्रह अथवा संख्यात अथवा असंख्यात उत्पन्न होते हैं। धूमप्रभा, तमप्रभा, तमतमाप्रभा पृथ्वी के कृष्णलेशी क्षद्रयोज नारकी के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए।
कृष्णलेशी क्षुद्रद्वापरयुग्म नारकी के सम्बन्ध में नौ पदों में ऐसा ही कहना चाहिए, परन्तु एक समय में दो अथवा छः अथवा दस अथवा चौदह अथवा अथवा संख्यात असंख्यात उत्पन्न होते हैं। धूमप्रभा यावत् तमतमाप्रभा पृथ्वी के कृष्णलेशी क्षुदद्वापरयुग्म नारकी के विषय में ऐसा ही कहना चाहिए।
कृष्णलेशी क्षद्रकल्योज नारकी के सम्बन्ध में नौ पदों में ऐसा ही कहना चाहिए, परन्तु एक समय में एक अथवा पाँच अथवा नौ अथवा तेरह अथवा संख्यात अथवा असंख्यात उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार धूमप्रभा, तमप्रभा, तमतमाप्रभा पृथ्वी के कृष्णलेशी क्षुद्रकल्योजयुग्म नारकी के सम्बन्ध में कहना चाहिए।
नीललेशी क्ष द्रकृतयुग्म नारकी के सम्बन्ध में जैसा कृष्णलेशी क्षद्रकृतयुग्म नारकी के उद्देशक में कहा वैसा ही कहना चाहिए, लेकिन उपपात वालुकाप्रभा में जैसा हो वैसा कहना चाहिए। वालुकाप्रभा पृथ्वी के नीललेशी क्षुद्रकृतयुग्म
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