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लेश्या-कोश .५८ १.२ पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से
रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जीवों में
गमक-१ पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( पज्जत्तसंखेजवासाउयसन्निपं चिंदियतिरिक्खज्जोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभपुढविनेरइएसु उववजित्तए x x x तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! छल्लेस्साओ पन्नत्ताओ । तं जहाकण्हलेस्सा, जाव-सुक्कलेस्सा ) उनमें कृष्ण यावत् शुक्ल छः लेश्या होती है।
-भग० श २४ । उ १ । सू ५५, ५६ । पृ० ६१६
गमक-२ पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि से जघन्यकालस्थितिवाले रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है पजत्तसंखेज्ज० जाव-जे भविए जहन्नकाल० x x x ते णं भंते ! जीवा एवं सो चेव पढमो गमओ निरवसेसो भाणियव्वो ) उनमें कृष्ण यावत् शुक्ल छ लेश्या होती हैं।
--भग० श २४ । उ १ । सू ६१, ६२ । पृ. ८१६
गमक-३ पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से उत्कृष्टस्थितिवाले रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( सो चेव उक्कोसकालहिईएसु उववन्नो x x x अवसेसो परिमाणादीओ भवाएसपज्जवसाणो सो चेव पढमगमओ यम्बो ) उनमें कृष्ण यावत् शुक्ल छ लेश्या होती हैं।
-भग० श २४ । उ १ । सू ६३ । पृ० ८१६
गमक-४ जधन्यस्थितिवाले पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनि से रत्नप्रभापृथ्वी के नारको में उत्पन्न होने योग्य जी जीव हैं (जहन्नकाल ट्ठिईय-पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभपुढवि० जाव-उववजित्तए xxx
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