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लेश्या-कोश
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सलेशी यावत् कापोतलेशी नारकी के सम्बन्ध में वैसा ही कहना चाहिए, जैसा सलेशी जीव के सम्बन्ध में कहा है। इसी प्रकार सलेशी यावत् तेजोलेशी असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार के सम्बन्ध में भी ऐसा ही कहना चाहिए।
पृथ्वीकायिक यावत् चतुरिन्द्रिय के सर्व लेश्या स्थानों में मध्य के दो समवसरणों में भवसिद्धिक भी होते हैं, अभवसिद्धिक भी होते हैं।
सलेशी यावत् शुक्ललेशी तिथंच पंचेन्द्रिय के सम्बन्ध में वैसा ही कहना चाहिए जसा नारकी के सम्बन्ध में कहा है।
क्रियावादी सलेशी यावत् शुक्ललेशी तथा अलेशी मनुष्य भवसिद्धिक होते हैं, अभवसिद्धिक नहीं होते हैं । अक्रियावादी, अज्ञानवादी तथा विनयवादी सलेशी यावत् शुक्ललेशी मनुष्य भवसिद्धिक भी होते हैं, अभवसिद्धिक भी होते हैं।
वानव्यंतर-ज्योतिषी-वैमानिक देवों के सम्बन्ध में वैसा ही कहना चाहिए जसा असुर कुमार देवों के सम्बन्ध में कहा गया है। जिसमें जितनी लेश्या हो उतनी लेश्या का विवेचन करना चाहिए ।
'८३.४ सलेशी अनंतरोपपत्र यावत् अचरम जीव तथा मतवाद की अपेक्षा से
वक्त व्यताअणं तरोववनगा णं भंते ! नेरइया किं किरियावाई० पुच्छा ? गोयमा ! किरियावाई वि जाव वेणइयवाई वि । सलेस्सा णं भंते ! अणंतरोववनगा नेरइया किं किरियावाई० ? एवं चेव, एवं जहेव पढमुद्देसे नेरइयाणं वत्तत्वया तहेव इह वि भाणियव्वा, नवरं जं जस्स अस्थि अणंतरोववगाणं नेरइयाणं तं तस्स भाणियव्वं । एवं सव्वजीवाणं जाव वेमाणियाणं, नवरं अणंतरोववनगाणं जं जाहिं अस्थि तं तहिं भाणियब्वं । ___ सलेस्सा णं भंते ! किरियावाई अणं तरोववन्नगा नेरइया किं नेरइयाउयं० पुच्छा ? गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेइ ( रेंति ) जाव नो देवाउयं पकरेइ । एवं जाव वेमाणिया । एवं सव्वट्ठाणेसु वि अणंतरोववनगा नेरइया न किंचि वि आउयं पकरेइ जाव अणागारोवउत्तत्ति । एवं जाव वेमाणिया णं नवरं जं जस्स अस्थि तं तस्स भाणियव्वं ।
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