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लेश्या-कोश सलेस्सा णं भंते ! किरियावाई अणंतरोववन्नगा नेरइया किं भवसिद्धिया ? अभवसिद्धिया ? गोयमा ! भवसिद्धिया, नो अभवसिद्धिया, एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिए उद्देसए नेरइयाणं वत्तव्वया भणिया तहेव इह वि भाणियव्वा जाव अणागारोवउत्तत्ति, एवं जाव वेमाणियाणं नवरं जं जस्स अस्थि तं तस्स भाणियव्वं, इमं से लक्खणं-जे किरियावाई सुक्कपक्खिया सम्मामिच्छदिट्ठिया एए सव्वे भवसिद्धिया, नो अभवसिद्धिया। सेसा सव्वे भवसिद्धिया वि । अभवसिद्धिया वि।
परंपरोववनगाणं भंते! नेरइया कि किरियावाई० एवं जहेव ओहिओ उद्देसओ तहेव परंपरोववन्नएस वि नेरइयाईओ तहेव निरवसेसं भाणियव्वं, तहेव तियदंडगसंगहिओ। ___ एवं एएणं कमेणं जच्चेव बंधिसए उहे सगाणं परिवाडी सच्चेव इहं वि जाव अचरिमो उद्देसओ, नवरं अणंतरा चत्तारि वि एक्कगमगा, परंपरा चत्तारि वि एकगमएणं । एवं चरिमा वि, अचरिमा वि एवं चेव, नवरं अलेस्सो केवली अजोगी न भण्णइ । सेसं तहेव ।
-भग० श ३० । उ २ से ११ । पृ० ६०६-१० सलेशी अनंगरोपपन्नक नारकी चारों मतबाद वाले होते हैं। प्रथम उद्देशक ( ८३.१ ) में नारकियों के सम्बन्ध में जैसी वक्तव्यता कही वैसी ही यहाँ भी कहनी चाहिए। लेकिन अनंतरोपपन्नक नारकियों में जिसमें जो सम्भव हो उसमें वह कहना चाहिए। इसी प्रकार यावत् वैमानिक देव तक सब जीवों के सम्बन्ध में जानना चाहिए। लेकिन अनंतरोपपन्नक जीवों में जिसमें जो संभव हो उसमें वह कहना चाहिए।
क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी तथा विनयवादी सलेशी अनंतरोपपन्न नारकी किसी भी प्रकार की आयु नहीं बाँधते हैं। इसी प्रकार यावत वैमानिक देवों तक कहना चाहिए। लेकिन जिसमें जो संभव हो उसमें वह कहना चाहिए।
क्रियावादी सलेशी अनंतरोपपन्नक नारकी भवसिद्धिक होते हैं, अभवसिद्धिक नहीं होते हैं। इस प्रकार इस अभिलाप से लेकर औधिक उद्देशक ( देखो '८३.३ ) में नारकियों के सम्बन्ध में जैसी वक्तव्यता कही वैसी वक्तव्यता यहाँ
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