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लेश्या - कोश
जिस प्रकार सलेशी यावत् शुक्ललेशी पंचेन्द्रिय तिर्यंच के सम्बन्ध में कहा गया है वैसा ही सलेशी यावत् शुक्ललेशी मनुष्य के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए । अशी मनुष्य किसी भी प्रकार की आयु नहीं बाँधते हैं ।
वाणव्यंतर- ज्योतिषी वैमानिक देवों के सम्बन्ध में वैसा ही कहना चाहिए जैसा असुरकुमार देवों के सम्बन्ध में कहा गया है। जिसमें जितनी लेश्या हो उतनी लेश्या का विवेचन करना चाहिए ।
८३३ सलेशी जीव और मतवाद की अपेक्षा से भवसिद्धिकता - अभवसिद्धिकता ---
सलेस्सा णं भंते! जीवा किरियाबाई किं भवसिद्धिया पुच्छा ? गोयमा ! भवसिद्धिया, नो अभवसिद्धिया । सलेस्सा णं भंते ! जीवा अकिरियावाई किं भवसिद्धिया पुच्छा ? गोयमा ! भवसिद्धिया वि अभवसिद्धिया वि । एवं अन्नाणियवाई वि, वेणइयवाई वि । जहा सलेस्सा एवं जाव सुक्कलेस्सा | अलेस्सा णं भंते! जीवा किरियावा किं भवसिद्धिया पुच्छा ? गोयमा ! भवसिद्धिया, नो अभवसिद्धिया । x x x एवं नेरइया वि भाणियव्वा नवरं नायव्वं जं अस्थि एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा, पुढविकाइया सव्वाणेसु दोसु वि समोसरणेसु भवसिद्धिया वि अभवसिद्धिया वि एवं जाव वणस्सइकाइया, बेइ दियतेइ दियचउरिंदिया एवं चेव नवरं सम्मत्ते ओहिनाणे आभिणिबोहीयनाणे सुयनाणे - एएस चेव दोसु मज्झिमेसु समोसरणेसु भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया, सेसं तं चैव, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा नेरइया, नवरं नायव्वं जं अस्थि, मणुस्सा जहा ओहिया जीवा । वाणमंतरजोइसिय वेमाणिया जहा असुरकुमारा ।
-भग० श ३० । उ १ । सू ३२ से ३४ | पृ० ६०८-६
क्रियाबादी सलेशी जीव भवसिद्धिक होते हैं, अभवसिद्धिक नहीं होते हैं । अक्रियावादी, अज्ञानवादी तथा विनयवादी सलेशी जीव भवसिद्धिक भी होते हैं, अभवसिद्धिक भी होते हैं । कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी जीवों के सम्बन्ध में वैसा ही कहना चाहिए जैसा सलेशी जीवों के सम्बन्ध में कहा है । क्रियावादी अशी जीव भवसिद्धिक होते हैं, अभवसिद्धिक नहीं होते हैं ।
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