________________
२९६
लेश्या-कोश भंगा भाणियव्वा, सेसं जहा नेरयाणं एवं जाव थणियकुमाराणं । पुढविक्काइयाणं सव्वत्थ वि चत्तारि भंगा, नवरं कण्हपक्खिए पढमतइया भंगा। तेउलेस्से पुच्छा ? गोयमा! बंधी न बंधइ बंधिस्सइ ; सेसेसु सव्वत्थ चत्तारि भंगा। एवं आउक्काइयवणस्सइकाइयाणं वि निरवसेसं। तेउक्काइयवाउक्काइयाणं सव्वत्थ वि पढमतइया भंगा। बेईदियतेइ दियचउरिदियाणं वि सव्वत्थ वि पढमतइया भंगा। x x x पचिंदियतिरिक्खजोणियाणं xxx सेसेसु चत्तारि भंगा। मणुस्साण जहा जीवाणं । x x x सेसं तं चैव, वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा असुरकुमारा।
.. -भग० श २६ । उ १ । सू २०, २४, २५ । पृ० ६००-६०१
सलेशी जीव कृष्णलेशी जीव यावत शुक्ललेशी जीव कोई प्रथम विकल्प से, कोई द्वितीय विकल्प से, कोई तृतीय विकल्प से, कोई चतुर्थ विकल्प से आयुकर्म का बंधन करता है। अलेशी जीव चतुर्थ विकल्प से आयु कर्म का बन्धन करता है। सलेशी नारकी, कापोतलेशी नारकी व नीललेशी नारकी कोई प्रथम विकल्प से, कोई द्वितीय विकल्प से, कोई तृतीय विकल्प से, कोई चतुर्थ विकल्प से आयुकर्म का बन्धन करता हैं। लेकिन कृष्णलेशी नारकी कोई प्रथम विकल्प से, कोई तृतीय विकल्प से आयुकर्म का बन्धन करता है। सलेशी, कृष्णलेशी यावत् तेजोलेशी असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार कोई प्रथम विकल्प से, कोई द्वितीय विकल्प से, कोई तृतीय विकल्प से, कोई चतुर्थ विकल्प से आयकर्म का वन्धन करता है । सलेशी, कृष्णलेशी, नीललेशी व कापोतलेशी पृथ्वीकायिक जीव कोई प्रथम विकल्प से, कोई द्वितीय विकल्प से, कोई तृतीय विकल्प से, कोई चतर्थ विकल्प से आयु कर्म का बन्धन करता है । तेजोलेशी पृथ्वीकायिक जीव तृतीय विकल्प से आयुकर्म का बन्धन करता है । सलेशी अप्कायिक यावत् वनस्पतिकाय की वक्तव्यता पृथ्वीकायिक की वक्तव्यता की तरह जाननी चाहिये। सर्व पदों में अग्निकायिक तथा वायुकायिक जीव कोई प्रथम व कोई तृतीय विकल्प से आयुकर्म का बंधन करता है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय व चतुरिन्द्रिय जीव सर्व लेश्या पदों में इसी प्रकार कोई प्रथम व कोई तृतीय विकल्प से आयकर्म का बन्धन करता है। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव सर्व लेश्यापदों में चार विकल्पों से आयुकर्म का बन्धन करता है। मनुष्य के सम्बन्ध में लेश्यापदों में औधिक जीव की तरह वक्तव्यता कहनी चाहिये। वानव्यं तर, ज्योतिषी तथा वैमानिक देव के सम्बन्ध में भी असुरकुमार की तरह वक्तव्यता कहनी चाहिए।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org