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लेश्या - कोश
कोई द्वितीय विकल्प से पाप कर्म का बंधन करता है परन्तु जिसके जितनी लेश्या हो उतने पद कहने चाहिये । मनुष्य में जीव पद की तरह वक्तव्यता कहनी चाहिये । वानव्यंतर देव असुरकुमार देव की तरह कोई प्रथम, कोई द्वितीय भंग से पाप कर्म का बंधन करता है । इसी तरह ज्योतिषी तथा वैमानिक देव कोई प्रथम, कोई द्वितीयभंग से पाप कर्म का बंधन करता है परन्तु जिसके जितनी लेश्या हो उतने पद कहने चाहिये ।
-७५-१९२ सलेशी औधिक जीव दण्डक और ज्ञानावरणीय कर्म-बंधन -
जीवे णं भंते! नाणावणिज्जं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ एवं जहेव पावकम्मस्स वत्तव्वया तहेव नाणावरणिज्जस्स वि भाणियव्वा, नवरं जीवपदे, मणुस्सपदे य सकसाई, जाव लोभकसाई मि य पढमबिइया भंगा अवसेसं तं चैव जाव वेमाणिया ।
-भग० श २६ । उ १ । सू १६ । पृ० ८६६
लेश्या की अपेक्षा ज्ञाणावरणीय कर्म के बंधन को वक्तव्यता, पापकर्म - बंधन की वक्तव्यता की तरह औधिक जीव तथा नारकी यावत् वैमानिक देव के सम्बन्ध में कहनी चाहिये । प्रत्येक में सलेशी पद तथा जिसके जितनी लेश्या हो उतने पद कहने चाहिये । औधिक जीवपद तथा मनुष्यपद में अलेशी पद भी कहना चाहिये ।
-७५·१·३ सलेशी औधिक जीव-दण्डक और दर्शनावरणीय कर्म-बन्धन
एवं दरिसणावरणिज्जेण वि दंडगो भाणियव्वो निरवसेसो । - भग० श २६ । उ १ । सू १६ । पृ० ८६६ ज्ञानावरणीय कर्म बन्धन की वक्तव्यता की तरह दर्शनावरणीय कर्मकी वक्तव्यता भी निरवशेष कहनी चाहिये |
-बन्धन
-७५९१·४ सलेशी औधिक जीव-दण्डक और वेदनीय कर्म बन्धन
जीवे णं भंते! वेयणिज्जं कम्मं किं बंधी० पुच्छा ? गोयमा ! अत्थेiइए बंधी बंधइ बंधिस्सइ (१), अत्थेगइए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ (२), अत्थेगइए बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ (४) सलेस्से वि एवं चैव तइयविहूणा भंगा। कण्हलेस्से जाव पम्हलेस्से पढमबिइया भंगा, सुक्कलेस्से त यविहूणा भंगा, अलेस्से चरिमो भंगो ।
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