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लेश्या-कोश भंगो । अलेस्स-केवलनाण-अजोगी य न पुच्छिज्जति । सेसपदेसु सव्वत्थ पढम-तइया भंगा; वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइवा । नाम गोयं अंतराइयं च जहेव नाणावरणिज्जं तहेव निरवसेसं ।
-भग० श २६ । उ ११ । सू १-६ । पृ० ६०२-६०३ सलेशी अचरम नारकी से दण्डक में सलेशी अचरम तिर्यच पंचेन्द्रिय जीवों तक के जीव पापकर्म का वन्धन प्रथम और द्वितीय भंग से करते हैं ।
सलेशी अचरम मनुष्य प्रथम तीन भंगों से पापकर्म का बन्धन करता है। अलेशी मनुष्य के सम्बन्ध में अचरमता का प्रश्न नहीं करना चाहिए। क्योंकि अचरम अलेशी नहीं होता है। सलेशी अचरम वानव्यंतर, ज्योतिषी तथा वैमानिक देव सलेशी अचरम नारकी की तरह प्रथम और दूसरे भंग से पापकर्म का बन्धन करते हैं।
सलेशी अचरम नारकी ज्ञानावरणीय कर्म का बन्धन प्रथम और द्वितीय भंग से करता है, मनुष्य को छोड़कर यावत् वैमानिक देवों तक इसी प्रकार जानना चाहिए। सलेशी अचरम मनुष्य ज्ञानावरणीय कर्म का बन्धन प्रथम तीन भंग से करता है। ज्ञानावरणीय कर्म की तरह दर्शनावरणीय कर्म का वर्णन करना चाहिए। वेदनीय कर्म के बन्धन में सब दण्डकों में प्रथम और द्वितीय भंग से बन्धन होता है लेकिन मनुष्य में अलेशी का प्रश्न नहीं करना चाहिए।
सलेशी अचरम नारकी मोहनीय कर्म का बन्धन प्रथम और द्वितीय भंग से करता है बाकी सलेशी अचरम दण्डक में जैसा पापकर्म के बन्धन के सम्बन्ध में कहा, वैसा ही निरवशेष कहना चाहिए। ____सलेशी अचरम नारकी आयुकर्म का बन्धन प्रथम और तृतीय भंग से करता है। इसी प्रकार यावत् सलेशी अचरम स्तनितकुमार तक दण्डक के जीव प्रथम और तृतीय भंग से आयुकर्म का बन्धन करते हैं। अचरम तेजोलेशी पृथ्वीकायिक, अप्पकायिक व वनस्पतिकायिक जीव केवल तृतीय भंग से आयुकर्म का बन्धन करता है। कृष्णलेशी, नीललेशी व कापोतलेशी अचरम पृथ्वीकायिक, अप्पकायिक व वनस्पतिकायिक जीव प्रथम और तृतीय भंग से आयुकर्म का बन्धन करता है। सलेशी अचरम अग्निकायिक व वायुकायिक जीव प्रथम और तृतीय भंग से आयुकर्म का बन्धन करता है। इसी प्रकार सलेशी अचरम द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय व चतुरिन्द्रिय प्रथम और तृतीय भंग से आयुकर्म का बन्धन करता है। सलेशी अचरम तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय प्रथम और तृतीय भंग से ; सलेशी अचरम मनुष्य भी
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