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लेश्या-कोश
३०९ चतुः सयोगी १६ भंग
(१) एक क्रोधोपयोगवाला, एक मानोपयोगवाला, एक मायोपयोगवाला और एक लोभोपयोगवाला, (२) एक क्रोधोपयोगवाला, एक मानोपयोगवाला, एक मायोपयोगवाला और बहुत लोभोपयोगवाले, (३) एक क्रोधोपयोगवाला, एक मानोपयोगवाला, बहुत मायोपयोगवाले, और एक लोभोपयोगवाला, (४) एक क्रोधोपयोगवाला, एक मानोपयोगवाला, बहुत मायोपयोगवाले और बहुत लोभोपयोगवाले, (५) एक क्रोधोपयोगवाला, बहुत मानोपयोगवाले, बहुत मायोपयोग वाले और एक लोभोपयोगवाला, (६) एक क्रोधोपयोगवाला, एक मानोपयोगवाला, बहुत मायोपयोगवाले और बहुत लोभोपयोगवाले, (७) एक क्रोधोपयोगवाला, बहुत मानोपयोगवाले, बहुत मायोपयोगवाले और एक लोभोपयोगवाला, (८) एक क्रोधोपयोगवाला, बहुत मानोपयोगवाले, बहुत मायोपयोगवाले और बहत लोभोपयोगवाले, (8) बहुत क्रोधोपयोगवाले, एक मानोपयोगवाला, एक मायोपयोगवाला, और एक लोभोपयोगवाला, (१०) बहुत क्रोधोपयोगवाले, एक मानोपयोगवाला, एक मायोपयोगवाला, और बहुत लोभोपयोगवाले, (११) बहत क्रोधोपयोगवाले, एक मानोपयोगवाला, बहुत मायोपयोगवाले, और एक लोभोपयोगवाला, (१२) बहुत क्रोधोपयोगवाले, एक मानोपयोगवाला, बहुत मायोपयोगवाले और बहुत लोभोपयोगवाले, (१३) बहुत क्रोधोपयोगवाले, बहुत मानोपयोगवाले, एक मायोपयोगवाला, और एक लोभोपयोगवाला, (१४) बहुत क्रोधोपयोगवाले, बहुत मानोपयोगवाले, एक मायोपयोगवाले, और बहुत लोभोपयोगवाले, (१५) बहुत क्रोधोपयोगवाले, बहुत मानोपयोगवाले, बहुत मायोपयोगवाले, और एक लोभोपयोगवाले, (१६) बहुत क्रोधोपयोगवाले, बहुत मानोपयोगवाले, बहुत मायोपयोगवाले, और बहुत लोभोपयोगवाले ।
अस्तु नारकी और देवों में जिन-जिन स्थानों में सत्ता की अपेक्षा विरह न हो वहाँ २७ भंग और जहाँ विरह हो वहाँ अस्सी भंग होते हैं। औदारिक के दस दंडकों में (पाँच स्थावर, ३ विकलेन्द्रिय, तिर्यच पंचेन्द्रिय व मनष्य) जो बोल निरन्तर मिलते हैं यहाँ अभंग और जहाँ निरन्तर नहीं मिलते हैं उनमें अस्सी भंग होते हैं।
अस्तु नारकी जीवों में अधिकांशतः क्रोध का ही उदय होता है अतः नारकियों में अधिकांशतः तत्ताईस भंग कहे गये हैं। किन्तु मनुष्य में क्रोधादि सभी कषायों में उपयुक्त बहुत जीव पाये जाते हैं अतः उनके कषायोदय में खास विशेषता नहीं है अतः मनुष्य के सम्बन्ध में अभंगक ( भंगों का अभाव ) बतलाया गया है।
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