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लेश्या - कोश
अनिवृत्ति करण में व्युच्छिन हुई ३६ प्रकृतियों का विवरण इस प्रकार है !
१ नरकगति, २ नरकानुपूर्वी ३ तिर्यञ्चगति, ४ तिर्यञ्चानुपूर्वी ५ द्वीन्द्रिय, ६ त्रीन्द्रिय, ७ चतुरिन्द्रिय, ८ से १० स्त्यानवृद्धि आदि तीन निद्रा, ११ उद्योत, १२ आतप, १३ एकेन्द्रिय, १४ साधारण, १५ सूक्ष्म, १६ स्थावर, १७ से २४ अप्रत्याख्यान कषाय चार और प्रत्याख्यान कषाय चार, २५ नपुंसकवेद, २६ स्त्रीवेद, २७ से ३२ हास्यादिषट्क, ३३ पुरुषवेद, ३४ संज्वलनक्रोध, ३५ संज्वलनमान तथा ३६ संज्वलनमाया ।
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क्षीण कषाय में १०१ प्रकृति सत्ता में कही है उसमें से पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, पांच अंतराय, निद्रा, प्रचला को बाद देकर सयोगी केवली गुणस्थान में ८५ की सत्ता है ।
अयोगी गुणस्थान में अन्तिम समय में तेरह प्रकृति की सत्ता इस प्रकार है
१ - असातावेदनीय अथवा साता वेदनीय में से एक, २ – मनुष्यगति, ३पंचेन्द्रियजाति, ४ – सुभग, ५ – त्रस, ६ - बादर, ७ - पर्याप्त, ८८- आदेय, ६ - यशोकीर्ति, १० – तीर्थङ्कर, ११ – मनुष्यायु, १२ – उच्चगोत्र व १३मनुष्यानुपूर्वी ।
पंच णव दोणि अट्ठावीसं चउरो कमेण तेण उदी । दोणि य पंच य भणिदा एदाओ सत्तपयडीओ ॥
पांच, नौ, दो, अट्ठाईस, चार, तिरानवे, दो, पांच- ये क्रम से ज्ञानावरण आदि की सत्ता प्रकृतियां एक सौ अड़तालीस है ।
— गोक० गा ३८
नोट-बन्ध में भेद विवक्षा से १४६ प्रकृतियां होती है । अभेद विवक्षा से १२० है । उदय में भेद विवक्षा में १४८ और अभेद विवक्षा से १२२ है । '
८० सलेशी जीव और अल्पकर्मतर - बहुकर्मतर -
सिय भंते! कण्हलेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए ? नीललेस्से नेरइए महाकम्मतराए ? हंता ! सिया । से केण ेणं भंते ! एवं वुच्चइकण्हलेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए ? नीललेस्से नेरइए महाकम्मतराए ? १. गोक०
० गा ३७
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