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लेश्या-कोश
२९३ जीव के पापकर्म का बंधन चार विकल्पों से होता है, यथा-(१) कोई एक जीव बांधा है, बांधता है, बांधेगा, (२) कोई एक बांधा है, बांधता है, न बांधेगा, (३) कोई एक बांधा है, नहीं बांधता है, बांधेगा, (४) कोई एक बांधा है, न बांधता है, न बांधेगा ।
कोई एक सलेशी जीव पापकर्म बांधा है, बांधता है, बांधेगा ; कोई एक बांधा है, बांधता है, न बांधेगा; कोई एक बांधा है, नहीं बांधता है, बांधेगा ; कोई एक बांधा है, न बांधता है, न बांधेगा।
कोई एक कृष्णलेशी जीव प्रथम भंग से, कोई एक द्वितीय भंग से पाप कर्म का बंधन करता है। इसी प्रकार नीललेशी यावत् पद्मलेशी जीव के सम्बन्ध में जानना चाहिए। कोई एक शुक्ललेशी जीव प्रथम विकल्प से, कोई एक द्वितीय विकल्प से, कोई एक तृतीय विकल्प से, कोई एक चतुर्थ विकल्प से पापकर्म का बंधन करता है । अलेशी जीव चतुर्थ विकल्प से पापकर्म का बंधन करता है।
नेरइए णं भंते ! पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ ? गोयमा ! अत्थेगइए बंधी० पढम बिइया । सलेस्से णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं० ? एवं चेव । एवं कण्हलेस्से वि, नीललेस्से वि, काऊलेस्से वि | xxx एवं असुरकुमारस्स वि वत्तव्वया भाणियव्वा, नवरं तेऊलेस्सा। xxx सव्वथ पढमबिइया भंगा, एवं जाव थणियकुमारस्स, एवं पुढविकाइयस्स वि, आउकाइयस्स वि, जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स वि सव्वत्थ वि पढम बिइया भंगा, नवरं जस्स जा लेस्सा । xxx मणूसस्स जच्चेव जीवपदे वत्तव्वया सच्चेव निरवसेसा भाणियन्वा। वाणमंतरस्स जहा असुरकुमारस्स । जोइसियस्स वेमाणियस्स एवं चेव, नवरं लेस्साओ जाणियवाओ।
-भग० श २६ । उ १ । सू १४, १५ । सू ८६६ ___ कोई एक सलेशी नारकी प्रथम भंग से, कोई एक द्वितीय भंग से पाप कर्म का बंधन करता है। इसी प्रकार कृष्णलेशी, नीललेशी व कापोतलेशी नारकी के सम्बन्ध में जानना चाहिये । इसी प्रकार सलेशी, कृष्णलेशी, नीललेशी, कापोतलेशी व तेजोलेशी असुरकुमार भी कोई प्रथम, कोई द्वितीय विकल्प से पाप कर्म का बंधन करता है। ऐसा ही यावत् स्तनितकुमार तक कहना। इसी प्रकार सलेशी पृथ्वीकायिक व अप्कायिक यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यश्च योनिक कोई प्रथम,
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