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लेश्या - कोश
पर वे भक्त का प्रत्याख्यान करते हैं— अनशन ग्रहण करते हैं, दोषों की आलोचना करते हैं. समाधि को प्राप्त करते हैं । भगवान् ने कहा है कि इस प्रकार के संज्ञी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय शुक्ललेश्या में मरण को प्राप्त कर उत्कृष्टतः सहस्रार कल्प ( आठवें देवलोक में ) उत्पन्न हो सकते हैं । किसी-किसी को शुभ परिणाम, शुभ लेश्या और प्रशस्त अध्यवसाय से अवधिज्ञान भी उत्पन्न हो जाता है ।
१७ - पार्श्वनाथ संतानवर्ती आचार्य मुनिचन्द्र को शुभध्यान आदि के द्वारा अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ । त्रिषष्टिश्लाका पुरुशचरित्र में कहा है-
अत्रान्तरे निशा जज्ञ े
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वेदनां तां
सहिष्णवः ।
शुभध्यादचलिता सद्यो जातावधिज्ञाना मृत्वाचार्या दिवं ययुः ॥ — त्रिश्लाका० पर्व १० । सर्ग ३ | श्लो ४६२, ४६५
मुनिचन्द्राख्यसूरय ।
अर्थात् मुनिचन्द्राचार्य ने वेदना को समता से सहन किया - शुभध्यानादि के द्वारा अवविज्ञान उत्पन्न किया । आवश्यक सूत्र की चूर्णी व मलयगिरि टीका में कहा है कि उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ ।
१८ - हस्तिनापुर के पद्मोत्तर राजा ने मुनिसुव्रतस्वामी के शिष्य सुव्रतसुरि से दीक्षित हुए। फिर शुद्ध अध्यवसाय से केवलज्ञान प्राप्त कर सिद्ध हुए । कहा है
पद्मोत्तरमुनिरपि पालित निष्कंलकश्रामण्यः शुद्धाध्यवसायेन कर्मजालं क्षपयित्वा समुत्पन्नं केवलज्ञानः संप्राप्तः सिद्धिमिति । — उत्त० अ १८ | लक्ष्मीवल्लभ | टीका
अर्थात् पद्मोत्तर मुनि ने निष्कलंक श्रामण्य का पालन किया । फलस्वरूप शुभ अध्यवसाय से कर्म जाल को खपाकर उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । यह निश्चित है कि केवल ज्ञान - केवलदर्शन की उत्पत्ति के समय शुभ अध्यवसाय के साथ शुभ परिणाम तथा शुभलेश्या भी होती है ।
१. मुणिचंदायरिए, सो चिंतइ एसो चोरत्ति, ते य गलिए गहिया, ते निरुस्सासा कता, न य भाषाओ कंपिया, तेसिं केवलणाणं उपपन्नं ।
- आव० निगा ४७६ - जिनदास चूर्णी
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