________________
लेश्या-कोश
२८३
१६-भगवान् महावीर के प्रमुख श्रावक महाशतक को सम्यक्त्व अवस्था में धर्म-जागरणा करते हुए शुभ अध्यवसाय आदि से अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ । महाशतक राजगृह नगर का वासी था।
तए णं तस्स महासतगस्स समणोवासगस्स सुभेणं अज्झवसाणेणं सुभेणं परिणामेणं जाव खओवसमेणं ओहिणाणे समुप्पन्ने ।
-उवा० अ ८ । सू ३७
महाशतक श्रावक को शुभ अध्यवसाय ( शुभ परिणाम से, विशुद्धमान लेश्या से, अवधिज्ञानावरणीयकर्म के क्षयोपशम से ) यावत् तदावरणीय कर्म के क्षयोपशम से अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ।
२०-सुग्रीवनगर में बलभद्र नामक राजा था। उसके मृगा नाम की पटरानी थी। उनके 'बलश्री' नाम का पुत्र था, जो 'मृगापुत्र' के नाम से विख्यात था। एक दिन मृगापुत्र ने एक श्रमण को-जो तप, नियम और संयम को धारण करने वाले, शीलवान् और गुणों के भण्डार थे-जाते हुए देखा। मृगापुत्र उन मुनि को ध्यान से देखने लगा। उसे विचार हुआ कि मैंने इस प्रकार का रूप पहले देखा है। फलस्वरूप भृगापुत्र को प्रशस्त अध्यवसाय आदि से जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न हुआ। .
साहुस्स दरिसणे तस्स, अज्झवसाणम्मि-सोहणे । मोहं गयस्स संतस्स, जाईसरणं समुप्पण्णं ।। देवलोग चुओ संतो, माणुसं भवमागओ। सण्णिणाण-समुप्पण्णे, जाई - सरइ - पुराणयं ॥ जाइसरणे समुप्पण्णे, मियापुत्ते महड्ढिए । सरइ पोराणियं जाई, सामण्णं च पुराकयं ॥
। -उत्त० अ १६ । गा ७ से ६ - 'अर्थात् साधु के दर्शन के कारण एवं मोहनीय कर्म के क्षयोपशम होने से तथा शुभ अध्यवसाय से ( आत्मा का सूक्ष्म परिणाम अध्यवसाय कहलाता है।) मृगापुत्र को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। संज्ञी ज्ञान (जातिस्मरणज्ञान )यह ज्ञान संज्ञी जीवों को ही होता है-अतः इसे संज्ञीज्ञान कहते हैं ; उत्पन्न होने से, पूर्व जन्म का स्मरण हुआ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org