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लेश्या-कोश
२०५ गमक-१-६ धूमप्रभापृथ्वी के नारकी से पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( देखो पाठ ऊपर .५८ १८.२ ) उन में नौ गमकों में ही कृष्ण तथा नील दो लेश्या होती हैं । ( ·५३.६ )
-भग० श २४ । उ २० । सू७ । पृ० ८३६ .५८ १८.६ तमप्रभापृथ्वी के नारकी से पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि में उत्पन्न होने
योग्य जीवों मेंगमक-१-६ तमप्रभापृथ्वी के नारकी से पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( .५८ १८.२ ) उनमें नौ गमकों में ही एक कृष्ण लेश्या होती है । ( ५३७ )
-भग० श २४ । उ २० । सू ७ । पृ० ८३६ ५८.१८'७ तमतमा प्रभापृथ्वी के नारकी से पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि में उत्पन्न
· होने योग्य जीवों में
गमक-१-६ तमतमाप्रभा पृथ्वी के नारकी से पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( अहेसत्तमपुढवीनेरइए णं भंते ! जे भविए० ? एवं चेव णव गमगा। नवरं ओगाहणा, लेस्सा, ठिइ, अणुबंधा जाणियव्वा x x x लद्धी णवसु वि गमएसु-जहा पढमगमए) उनमें नौ गमकों में ही एक परम कृष्ण लेश्या होती है। ( ५३.८ )
-भग० श २४ । उ २० । सू८ । पृ० ८३६ "५८.१८'८ पृथ्वीकायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि में उत्पन्न होने योग्य
जीवों मेंगमक-१-६ पृथ्वीकायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( पुढविकाइ एणं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए x x x ते णं भंते ! जीवा० ? एवं परिमाणादीया अणुबंधपज्जवसाणा जज्चेव अप्पणो सहाणे वत्तव्वया सच्चेव पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु वि उववज्जमाणस्स भाणियव्वा x x x सेसं तं चेव ) उनमें प्रथम के तीन गमकों में चार लेश्या, मध्यम के तीन गमकों में तीन लेश्या तथा शेष के तीन गमकों में चार लेश्या होती हैं । ( ·५८.१०.१ )
-भग० श २४ । उ २० । सू १०-१२ । पृ० ८३९-४०
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