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लेश्या-कोश (धर्मजागरणा करते हुए ) आणंद श्रावक को किसी समय में शुभ अध्यवसाय शुभपरिणाम और विशुद्धलेश्या से तदावरणीय कर्म ( अवधिज्ञानावरणीय कर्म ) के क्षयोपशम होने से अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ।
१०-भरतचक्रवृत्ति को आरिसा भवन में अनित्य भावना को भावित करते हुए केवलज्ञान, केवलदर्शन उत्पन्न हुआ-(सम्यक्त्व तथा चारित्र अवस्था में )।
तए णं तस्स भरहस्स रण्णो सुभेणं परिणामेणं पसत्थेहिं अज्झव साणेहिं लेसाहिं विसुज्झमाणी हिं २ ईहापोहमग्गणगवेसणं करेमाणस्स तयावरणिज्जाणं कम्माणं खएणं कम्मरयविकिरणकरं अपुव्वकरणं पविट्ठस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे।
-जंबु० व ३ । सू ७० भरत चक्रवर्ती को आरिसाभवन में शुभपरिणाम, प्रशस्त अध्यवसाय, विशुद्ध लेश्या से ईहा-अपोह मार्गणा-गवेषणा करते हुए तदावरणीय कर्मों ( केवल ज्ञानावरणीय कर्म आदि ) के क्षय होने के अणुत्तर केवलज्ञान-केवलदर्शन उत्पन्न हुआ।
११-शिवराजर्षि को मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में तपस्या करते हुए शुभलेश्यादि से विभंग अज्ञान उत्पन्न हुआ। ___ तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स छट्टछट्टणं अणिक्खित्तेणं दिसाचक्कवालेणं जाव-आयावेमाणस्स पगइभद्दयाए जाव विणीययाए अण्णया कयाइ तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स विब्भंगे णामं नाणे समुप्पण्णे ।
-भग० श० ११ । उ ६ । सू ७१ अर्थात् निरंतर बेले-बेले की तपस्यापूर्वक दिकचक्रवाल तप करते यावत् आतापना लेने और प्रकृति की भद्रता यावत् विनीतता से शिवराजर्षि को किसी दिन तदावरणीय (विभंगज्ञानावरणीय ) कर्मों के क्षयोपशम से ईहा, अपोह मार्गणा और गवेषणा करते हुए विभंग अज्ञान हुआ।
१२–अणगार गजसुकुमाल श्रीकृष्ण के संसारपक्षीय छोटे भाई थे। उन्होंने कुमारावस्था में दीक्षा ग्रहण की थी । भगवान अरिष्टनेमि की आज्ञा से महाकाल
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