________________
लेश्या - कोश
२७७
पसत्थेणं अवसाणेणं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं तयावरणिज कम्माणं खओवसमेणं ईहापूह जाब सण्णिपुत्र्वे जाईसरणे समुत्पन्ने ।
- णाया० श्रु १ अ ८ । सु १८१
जितशत्रु प्रमुख राजाओं को ( मल्लीकुमारी से विविधप्रकार का उपदेश सुनकर ) शुभपरिणाम, प्रशस्त अध्यवसाय, विशुद्धमान लेश्या से, तदावरणीय कर्म के क्षयोपशम होने से ईहा ऊपोह मार्गणा व गवेषणा करते हुए जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न हुआ ।
द-
- वाणिज्यग्ग्राम वासी सुदर्शन नामक सेठ को सम्यक्त्व अवस्था में जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न हुआ
तए णं तस्स सुदंसणस्स सेट्ठिस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयम सोच्चा णिसम्म सुभेणं अज्झवसाणेणं सुभेणं परिणामेणं लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूर- मग्गण - गवेसणं करेमाणस्स सण्णीपुव्वे जाईसरणे समुत्पन्ने ।
- भग० श ११ । उ ११ । सू १७१
अर्थात् श्रवण भगवान महावीर स्वामी से धर्म सुनकर और हृदय में धारण कर सुदर्शन सेठ को शुभ अध्यवसाय, शुभपरिणाम और विशुद्धलेश्या से तदावरणीय कर्म का क्षयोपशम हुआ और ईहा, अपोह, मार्गणा और गवेषणा करते हुए संज्ञीपूर्व १ – जातिस्मरण ( ऐसा ज्ञान जिससे निरंतर - संलग्न अपने संज्ञी रूप से किये हुए पूर्व भव देखे जा सकें ) ज्ञान उत्पन्न हुआ ।
E-- आनंद श्रावक को पौषधशाला में विशेष रूप से धर्म की आराधना करते हुए सम्यक्त्व अवस्था में अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ ।
आणंदस्स समणोवासगस्स अन्नया कयाइ सुभेणं अज्झवसाणेणं सुभेणं परिणामेणं लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं तयावरणिज्जाणं खओवसमेणं ओहिनाणे समुत्पन्ने ।
१. समवाओ सूत्र में जातिस्मरण ज्ञान को संज्ञीज्ञान कहा है ।
Jain Education International
-उवा० अ १ । सू ६६
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org