________________
२५०
लेश्या-कोश और कदाचित् कापोतलेशी होकर मरण को प्राप्त होता है । कदाचित् जिस लेश्या में उत्पन्न होता है, कदाचित् उसी लेश्या में मरण को प्राप्त होता है।
इसी प्रकार नीललेशी तथा कापोतलेशी पृथ्वीकायिक जीव के सम्बन्ध में वर्णन करना चाहिए।
तेजोलेशी पृथ्वीकायिक जीव तेजोलेशी पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होता है तथा कदाचित् कृष्णलेशी होकर, कदाचित् नीललेशी होकर, और कदाचित् कापोतलेशी होकर मरण को प्राप्त होता है। तेजोलेश्या में वह उत्पन्न होता है लेकिन तेजो लेश्या में मरण को प्राप्त नहीं होता है। ___ इसी प्रकार पृथ्वीकायिक जीव की तरह अप्कायिक जीव तथा वनस्पतिकायिक जीव के सम्बन्ध में चारों लेश्याओं का वर्णन करना चाहिए।
इसी प्रकार पृथ्वीकायिक जीव की तरह अग्निकायिक जीव एवं वायुकायिक जीव के सम्बन्ध में तीन लेश्याओं का ही वर्णन करना चाहिए , क्योंकि इनमें तेजो लेश्या नहीं होती है।
इसी प्रकार पृथ्वीकायिक जीव की तरह द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीव के सम्बन्ध में तीन लेश्याओं का ही वर्णन करना चाहिए।
तिर्यश्च पंचेन्द्रिय तथा मनुष्य के सम्बन्ध में वैसा ही कहना जैसा पृथ्वीकायिक जीव के सम्बन्ध में आदि की तीन लेश्या को लेकर कहा , परन्तु छः लेश्याओं का वर्णन करना चाहिए।
वानव्यंतर देव के सम्बन्ध में असुरकुमार की तरह कहना चाहिए।
यह निश्चित है कि तेजोलेशी ज्योतिषी देव तेजोलेशी ज्योतिषी देव में उत्पन्न होता है तथा तेजोलेशी रूप में च्यवन ( मरण ) को प्राप्त होता है ।
इसी प्रकार तेजोलेशी वैमानिक देव तेजोलेशी वैमानिक देव में उत्पन्न होता है तथा तेजोलेशी रूप में च्यवन को प्राप्त होता है।
इसी प्रकार पद्मलेशी वैमानिक देव पद्मलेशी वैमानिक देव में उत्पन्न होता है तथा पद्मलेशी रूप में च्यवन को प्राप्त होता है।
इसी प्रकार शुक्ललेशी वैमानिक देव शुक्ललेशी वैमानिक देव में उत्पन्न होता है तथा शुक्ललेशी रूप में च्यवन को प्राप्त होता है। वैमानिक देव जिस लेश्या में उत्पन्न होता है उसी लेश्या में च्यवन को प्राप्त होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org