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नेश्या-कोश अर्थात् भगवान महावीर को शालिशीर्ष ग्राम में दो दिन की तपस्या में, शीतादि की तीव्र वेदना को समता से सहन करने से, लोकप्रमाण अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ। कहा जाता है कि लोकप्रमाण अवधिज्ञान अनुत्तरविमानवासी देवों को होता है ।' ( उस समय उनके विशुद्धलेश्या भी थी)
२-मेषकुमार के जीव को-पूर्वभव ( मेरुप्रम हस्ति ) के भव में मिथ्यात्व अवस्था में जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न हुआ
तएणं तव मेहा ! लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं अज्झवसाणेणं सोहणेणं सुभेणं परिणामेणं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूहमग्गण-गवेसणं करेमाणस्स सन्निपुव्वे जाईसरणे समुप्पज्जित्था ।
-णाया० श्रु १ अ १ । सू १७० अर्थात् मेघकुमार को अपने पूर्वभव में विशुद्धलेश्या, शुभ अध्यवसाय, शुभपरिणाम एवं तदावरणीय ( मतिज्ञानावरणीय ) कर्मों के क्षयोपशम से ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेषणा करते हुए जातिस्मरण (संज्ञीज्ञान) ज्ञान उत्पन्न हुआ।
३-मेघ अणगार की अवस्था में ( सम्यग्दृष्टि की अवस्था में )
तएणं तस्स मेहस्स अणगारस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयम सोच्चा निसम्म सुभेहिं परिणामेहिं पसत्थेहिं अज्भवसाणेहिं लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूहमग्गणगवेसणं करेमाणस्स सन्निपुव्वे जाईसरणे समुप्पण्णे।
--णाया० श्रु १ अ १ । सू १६० अर्थात् भगवान् महावीर के अंतेवासी शिष्य मेघ ( अणगार ) को विशुद्धलेश्या, शुभ परिणाम तथा प्रशस्त अध्यवसाय से एवं तदावरणीय कर्मों के क्षयोपशम से ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेषणा करते हुए जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। १-विशेषात् कर्मक्षपणं धर्मध्यानदीप्यत ।
बभूव चावधिज्ञानं श्रीवीरस्वामिनोऽधिकम् ।। अनुत्तरस्थितस्यैव सर्वलोकावलोकनम् ।।
-त्रिशलाका पर्व १० । सर्ग ३ । श्लो० ६२१, ६२२
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