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लेश्या-कोश
२६९ '६६ ३.३ भावितात्मा अणगार का सकर्मलेश्या का जानना व देखना
अणगारे णं भंते ! भावियप्पा अप्पणो कम्मलेस्सं न जाणइ, न पासइ, तं पुण जीवं सरूविं सकम्मलेस्सं जाणइ, पासइ ? हंता गोयमा ! अणगारे | भावियप्पा अप्पण्णो कम्मलेस्सं न जाणइ, न पासइ, न पुणं जीवं सरूविं सकम्मलेस्सं जाणइ, पासइ ।
-भग० श १४ । उ ६ । सू १ । पृ० ७०६ भावितात्मा अणगार अपनी कर्मलेश्या को न जानता है, न देखता है। परन्तु सरूपी सकर्मलेश्या को जानता है, देखता है।
टीकाकार कहते हैं-rभावितात्मा अणगार छद्मस्थ होने के कारण ज्ञानावरणीयादि कर्म के योग्य अथवा कर्म सम्बन्धी कृष्णादि लेश्याओं को नहीं जानता है ; क्योंकि कर्मद्रव्य तथा लेश्याद्रव्य अति सूक्ष्म होने के कारण छमस्थ के ज्ञान द्वारा अगोचर है-परन्तु वह अणगार कर्म तथा लेश्या वाले तथा शरीर युक्त आत्मा को जानता है ; क्योंकि शरीर चक्षु इन्द्रिय के द्वारा ग्रहण होता है तथा आत्मा का शरीर के साथ कथंचित् अभेद है। इसलिये उसको जानता है।" '६६ ४ सलेशी जीव और ज्ञान तुलना'६६.४.१ सलेशी नारकी की ज्ञान तुलना
कण्हलेस्से णं भंते ! नेरइए कण्हलेसं नेरइयं पणिहाए ओहिणा सव्वओ समंता समभिलोएमाणे-समभिलोएमाणे केवइयं खेत्तं जाणइ, केवइयं खेत्तं पासइ ? गोयमा! णो बहुयं खेत्तं जाणई, णो बहुयं खेत्तं पासइ, णो दूरं खेत्तं जाणई, णो दूरं खेत्तं पासइ, इत्तरियमेव खेत्तं जाणइ, इत्तरियमेव खेत्तं पासइ । से केणढणं भंते ! एवं वुच्चइ–'कण्हलेसे णं नेरइए तं चेव जाव इत्तरियमेव खेत्तं पासई' ? गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे बहुसमरमणिज्जंसि भूमिभागंसि ठिच्चा सव्वओ समंता समभिलोएज्जा, तए णं से पुरिसे धरणितलगयं पुरिसं पणिहाए सव्वओ समंता समभिलोएमाणे-समभिलोएमाणे णो बहुय खेत्तं जाव पासइ, जाव इत्तरियमेव खेत्तं पासइ, से तेणढणं गोयमा! एवं वुच्चइ-कण्हलेसे णं नेरइए जाव इत्तरियमेव खेत्तं पासइ। नीललेसे णं भंते ! नेरइए कण्हलेसं नेरइयं पणिहाय
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