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लेश्या-कोश अविसुद्धलेस्से (णं भंते ! ) अणगारे समोहयासमोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देवं देविं अणगारं जाणइ, पासइ ? ( गोयमा !) नो इण? समह । (६)
विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे असमोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेस्सं देवं देविं अणगारं जाणइ पासइ ? हंता जाणइ पासइ जहा अविसुद्धलेस्सेणं (छ) आलावगा एवं विसुद्धलेस्सेणं वि छ आलावगा भाणियव्वा जाव विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहयासमोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेस्सं देव देविं अणगारं जाणइ पासइ ? हंता जाणइ पासइ । (१२)
-जीवा० प्रति ३ । उ २ । सू १०३ । पृ० १५१ अविशुलेशी अणगार असमवहत आत्मा से अविशुद्धलेशी देव, देवी तथा अणगार को जानता व देखता नहीं है (१) । अविशुद्धलेशी अणगार असमवहत आत्मा से विशुद्धलेशी देव, देवी तथा अणगार को जानता व देखता नहीं है (२)। अविशुद्धलेशी अणगार समवहत आत्मा से अविशुद्धलेशी देव, देवी तथा अणगार को जानता व देखता नहीं है (३)। अविशुद्धलेशी अणगार समवहत आत्मा से विशुद्धलेशी देव, देवी तथा अणगार को जानता व देखता नहीं है (४)। अविशुद्धलेशी अणगार समवहतासमवहत आत्मा से अविशुद्धलेशी देव, देवी तथा अपगार को जानता व देखता नहीं है (५)। अविशुद्धलेशी अणगार समवहतासमवहत आत्मा से विशुद्धलेशी देव, देवी तथा अणगार को जानता व देखता नहीं हैं । (६)।
इसी प्रकार विशुद्धलेशी अणमार के छः आलापक कहने चाहिए लेकिन जानता है तथा देखता है ऐसा कहना चाहिए।
नोट--टीकाकार श्री मलयगिरि ने असमवहत का अर्थ 'वेदनादिसमुद्घातरहित' तथा समवहत का अर्थ 'वेदनादिसमुद्घाते गतः' किया है। समवहतासमवहत का अर्थ किया है-'वेदनादिसमुद्घातक्रियाविष्टो न तु परिपूर्ण समवहतो नाप्यसमवहतः सर्वथा ।' मलयगिरि ने किसी मूल टीकाकार की उक्ति दी है-'शोभनमशोभनं वा वस्तु यथावद्विशुद्धलेश्यो जानाति, समुद्घातोऽपि तस्याप्रतिबन्धक एव ।" लेकिन भगवती के टीकाकार श्री अभयदेव सूरि ने 'असमोहएणं अप्पाणेणं' का अर्थ 'अनुपयुक्तेनात्मना' किया है।
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