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२६.
लेश्या-कोश
ऐसे ही तीन-तीन गमक कृष्ण, नील तथा कापोतलेश्या के सम्बन्ध में कहने चाहिए।
असुरकुमार के चौंसठ लाख आवासों में जो असंख्यात विस्तार वाले हैं, उनमें एक समय में जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से असंख्यात तेजोलेशी असुरकुमार उत्पन्न ( ग०१) होते हैं ; जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से असंख्यात तेजोलेशी असुरकुमार मरण (ग. २) को प्राप्त होते हैं; तथा असंख्यात तेजोलेशी एक समय में अवस्थित ( ग० ३ ) रहते हैं।
ऐसे ही तीन-तीन गमक कृष्ण, नील तथा कापोतलेश्या के मम्बन्ध में कहने चाहिए।
नागकुमार से स्तनितकुमार तक के देवावासों के सम्बन्ध में असुरकुमार के देवावासों की तरह तीन संख्यात के तथा तीन असंख्यात के गमक, इस प्रकार चारों लेश्याओं पर छः-छः गमक कहने चाहिए। परन्तु जिसके जितने भवन होते हैं उतने समझने चाहिए ।
वानव्यंतर के जो संख्यात लाख आवास हैं वे सभी संख्यात विस्तार वाले हैं। उनमें एक समय में जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से संख्यात तेजोलेशी वानव्यंतर उत्पन्न (ग०१) होते हैं ; जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से संख्यात तेजोलेशी वानव्यंतर मरण (ग० २) को प्राप्त होते हैं; तथा संख्यात तेजोलेशी वानव्यंतर एक समय में अवस्थित (ग. ३) रहते हैं।
ऐसे ही तीन-तीन गमक कृष्ण, नील तथा कापोतलेश्या के सम्बन्ध में कहने चाहिए।
ज्योतिषी देवों के जो असंख्यात विमान हैं वे सभी संख्यात विस्तार वाले हैं। उनके सम्बन्ध में तेजोलेश्या को लेकर उत्पत्ति, च्यवन (मरण) तथा अवस्थिति के तीन गमक वानव्यंतर देवों की तरह कहने चाहिए।
सौधर्मकल्प देवलोक के बत्तीस लाख विमानों में जो संख्यात विस्तार वाले हैं उनमें उत्पत्ति, च्यवन तथा अवस्थिति के तीन गमक एक तेजोलेश्या को लेकर ज्योतिषी विमानों की तरह कहने चाहिए।
सौधर्मकल्प देवलोक के बत्तीस लाख विमानों में जो असंख्यात विस्तार वाले हैं, उनमें उत्पत्ति, च्यवन तथा अवस्थिति के तीन गमक एक तेजोलेश्या को लेकर कहने चाहिए। इन तीनों गमकों में उत्कृष्ट में असंख्यात कहना चाहिए ।
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