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लेश्या-कोश .५७.१८.६ अप्कायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि में उत्पन्न होने योग्य
जीवों में
गमक-१-६ अप्कायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( पुढविकाइए णं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए x x x ते णं भंते ! जीवा० ? एवं परिमाणादीया अणुबंधपज्जवसाणा जच्चेव अप्पणो सहाणे वत्तव्वया सच्चेव पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु वि उववज्जमाणस्स भाणियव्वा । x x x जइ आउकाइएहिंतो उववज्जति० ? एवं आउक्काइयाणं वि। एवं जाव-चउरिंदिया उववाएयव्वा । नवरं सव्वत्थ अप्पणो लद्धी भाणियव्वा । x x x जहेव पुढविक्काइएस उववज्जमाणाणं लद्धी तहेव सव्वत्थ x x x ) उनमें प्रथम के तीन गमकों में चार लेश्या, मध्यम के तीन गमकों में तीन लेश्या तथा शेष के तीन गमकों में चार लेश्या होती हैं। ( देखो '५८ १० २)
-भग० श २४ । उ २० । सू १०-१२ । पृ० ८३६-४० '५८ १८.१० अनिकायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि में उत्पन्न होने योग्य
जीवों मेंगमक-१-६ अग्निकायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( देखो पाठ ऊपर '५८.१८.६ ) उनमें नौ गमकों में ही तीन तीन लेश्या होती हैं । ( देखो .५८.१० ३)
-भग० श २४ । उ २० । सू १०-१२ । पृ० ८३६-४० .५८ १८ ११ वायुकायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि में उत्पन्न होने योग्य
जीवों मेंगमक-१-६ वायुकायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( देखो पाठ ऊपर ५८ १८ १ ) उनमें नव गमकों में ही तीन लेश्या होती हैं । ( देखो ५८ १०४ )
-भग० २४ । उ २० । सू १०-१२ । पृ० ८३६-४० ५८ १८.१२ वनस्पतिकायिक योनि से पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि में उत्पन्न होने
योग्य जीवों में
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