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लेश्या-कोश
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है । सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक ( नौ लोकांतिक, द्वितीय किल्विषी ) में एक पद्मलेश्या होती है। उसके बाद लांतक से सर्वार्थसिद्ध ( तीसरा किल्विषी ) सब देवों में शुक्ललेश्या होती है।
कल्पातीतास्ततो ज्ञया देवा वैमानिकाःपरे । अहमिन्द्राभिधानास्ते प्रवीचार वि वर्जिताः ॥१७८।। वि वद्धित शुभध्यानाः शुक्ललेश्यावलम्बिनाः ॥१७॥
-ज्ञाना० प्रक ३० । श्लो १७८-१७६
कल्पदेवों के ऊपर कल्पातीत देव ( नव नवेयक व पांच अनुत्तर विमान ) है। वे देव अहमिन्द्र नाम से वर्णन किये जाते हैं । अर्थात् उनका आचार्यों ने अहमिन्द्र नाम कहा है। वे अहमिन्द्र काम-रहित है उनके स्त्री का मैथुन-वर्जित हैं अतः वहां देवांगनायें नहीं होती हैं । वे शुक्ललेश्या के धारण करने वाले हैं।
कल्पेषु च विमानेषु परतः परतोऽधिकाः । शुभलेश्यायुर्विज्ञान प्रभावः स्वर्गिणः स्वयम् ।।
-ज्ञाना० प्रक ३६ । श्लो १८१
कल्पों में और कल्पातीत विमानों के देवों में शुभलेश्या, आयु-विज्ञान प्रभावादिक करके देव स्वयं ही अगले-अगले विमानों में अधिक-अधिक बढ़ते
६ से ८ सलेशी जीव ६१ सलेशी जीव और समपद .६१ १ सलेशी जीव-दण्डक और समपद
सलेस्सा णं भंते ! नेरइया सव्वे समाहारा, समसरीरा, समुस्सासनिस्सासा सव्वे वि पुच्छा ? गोयमा ! एवं जहा ओहिओ गमओ तहा सलेस्सागमओ वि निरवसेसो भाणियन्वो जाव वेमाणिया।
-पण्ण० प १७ । उ १ । सू ११ । पृ० ४३७
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