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लेश्या-कोश
२३५ सिय भंते ! जाव-चत्तारि पंच वणस्सइकाइया० पुच्छा । गयमा! णो इण8 समठे । अणंता वणस्सइकाइया एगयओ साहारणसरीरं बंधंति । सेसं जहा तेउकाइयाणं जाव-उव्वति x x x सेसं तं
चेव ।
-भग० श १६ । उ ३ । सू १, २, १७, १८, १६ । पृ० ७८१-८२
सिय भंते ! जाव-चत्तारि पंच बेंदिया एगयओ साहारणसरीरं बंधति x x x णो इण8 सम? । x x x पत्तेयसरीरं बंधंति । x x x तेसिणं भंते ! जीवाणं कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! तओ लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा-कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काऊलेस्सा। x x x एवं तेइ दिया(ण) वि, एवं चउरदिया(ण) वि । xxx सिय भंते ! जाव चत्तारि पंच पंचिंदिया एगयओ साहारण ? एवं जहा दियाणं, नवरं छल्लेसा।
-भग० श २० । उ १ । सू १ से ४ । पृ० ७६०
दो, तीन, चार, पाँच अथवा बहु पृथ्वीकायिक जीव साधारण शरीर नहीं बांधते हैं, प्रत्येक शरीर बांधते हैं। इन पृथ्वीकायिक जीव समूह के प्रथम की चार लेश्याएं होती है।
इसी प्रकार अप्कायिक जीव समूह साधारण शरीर नहीं बांधते हैं, प्रत्येक शरीर बांधते हैं और इनके चार लेश्याएं होती हैं ।
अग्निकायिक तथा वायुकायिक जीव समूह भी साधारण शरीर नहीं बांधते हैं, प्रत्येक शरीर बांधते हैं और इनके प्रथम की तीन लेश्याएं होती हैं।
दो यावत् पाँच यावत् संख्यात यावत् असंख्यात वनस्पतिकायिक जीव समूह साधारण शरीर नहीं बांधते हैं, प्रत्येक शरीर बांधते हैं। इन वनस्पतिकायिक जीव समूहों के प्रथम की चार लेश्याएं होती हैं। लेकिन अनन्त वनस्पतिकायिक जीव समुह साधारण शरीर बांधते हैं। इन वनस्पतिकायिक जीव समूहों के प्रथम की तीन लेश्याएं होती हैं।
द्वीन्द्रिय यावत् चतुरिन्द्रिय जीव समूह साधारण शरीर नहीं बांधते हैं, प्रत्येक शरीर बांधते हैं । इन जीव समूहों के प्रथम की तीन लेश्याएं होती हैं।
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