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लेश्या-कोश गमक–६ जघन्यस्थितिवाले पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से उत्कृष्टस्थितिवाले रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( जहन्नकालट्ठिईयपजत्ता० जाव-तिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए उक्कोसकालट्ठिईएसु रयणप्पभापुढविनेरइएसु उवजित्तए xxx ते णं भंते ! जीवा० अवसेसं तं चेव ) उनमें कृष्ण, नील तथा कापोत तीन लेश्या होती है।
-भग० श २४ । उ १ । सू ४०, ४१ । पृ०८१७ गमक-७ उत्कृष्टस्थितिवाले पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि से रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( उक्कोसकालट्टिईयपज्जत्तअसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववजित्तए x x x ते णं भंते ! जीवा xxx अवसेसं जहेव ओहियगमएणं तहेव अणुगंतव्वं ) उनमें कृष्ण, नील तथा कापोत तीन लेश्या होती है।
-भग० श २४ । उ १ । सू ४३, ४४ । पृ० ८१७-१८ गमक-८ उत्कृष्टस्थितिवाले पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से जघन्य स्थितिवाले रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( उक्कोसकालट्ठिईयपज्जत्त० तिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए जहन्नकालट्ठिईएसु रयण० जाव-उववज्जित्तए x x x ते णं ते ! जीवा० x x x सेसं तं चेव, जहा सत्तमगमए ) उनमें कृष्ण, नील तथा कापोत तीन लेश्या होती है।
-भग० श २४ । उ १ । सू ४६, ४७ । पृ० ८१८ गमक- उत्कृष्टस्थितिवाले पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि से उत्कृष्टस्थितिवाले रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( उक्कोसकालाहिईयपज्जत्त-जाव-तिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए उक्कोसकालट्ठिईएसु रयण० जाव-उववज्जित्तए xxx ते णं भंते ! जीवा० xxx सेसं जहा सत्तमगमए ) उनमें कृष्ण, नील तथा कापोत तीन लेश्या होती है।
-भग० श २४ । उ १ । सू ४६, ५० । पृ० ८१८
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