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लेश्या-कोश
१८५ गमक-ह उत्कृष्टस्थितिवाले पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्य च योनि से उत्कृष्टस्थितिवाले रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( उक्कोसकालट्ठिईयपजत्त० जाव-तिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए उक्कोसकालट्ठिईय० जाव--उववजित्तए x x x ते णं भंते ! जीवा० सो चेव सत्तमगमओ निरवसेसो भाणियव्वो ) उनमें कृष्ण यावत् शुक्ल छः लेश्या होती हैं ।
-भग० श २४ । उ १ । सू ७२, ७३ । पृ० ८२०-२१ '५८ १.३ पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी मनुष्य से रत्नप्रभापृथ्वी के
नारकी में उत्पन्न होने योग्य जीवों में-- गमक-१-६ पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले संजी मनुष्य से रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( पजत्तसंखेजवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए रयणप्पभाए नेरइएसु उववजित्तए xxx ते णं भंते ! एवं सेसं जहा सन्निपंचिंदयतिरिक्खजोणियाणंजाव-'भवाएसो' त्ति । ग० १ । सो चेव जहन्नकालट्टिईएस उववन्नो-- एस (सा) चेव वत्तव्वया। ग०२। सो चेव उक्कोसकालहिईएस उन्यवनो-एस चेव वत्तव्वया। ग०३। सो चेव अप्पणा जहन्नकालहिईओ जाओ-एस चेव वत्तव्वया। ग०४। सो चेव जहन्नकालट्ठिईएसु उववन्नो-एस चेव वत्तव्वया चउत्थगमगसरिसा णेयव्वा । ग०५। सो चेव उक्कोसकालटिईएस उववन्नो-एस चेव गमगो। ग०६। सो चेव अध्पणा उक्कोसकालढिईओ जाओ, सो चेव पढमगमओ णेयव्यो। ग० ७ । सो चेव जहन्नकालटिईएस उववन्नो, सच्चेव सत्तमगमगवत्तव्वया। ग०८। सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववन्नो, सच्चेव सत्तमगमगवत्तन्वया। ग०६ ) उनमें नव ही गमकों में छः लेश्या होती हैं।
-भग० श २४ । उ १ । सू ६१-१०० । पृ० ८२३-२४ .५८ २ शर्कराप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जीवों में'५८.२.१ पर्याप्त सख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि से
शर्कराप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जीवों में
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