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लैश्या-कोश
द्रव्यश्या के छहों भेद दो गन्धवाले हैं ।
१२.१ प्रथम तीन लेश्याएं दुर्गन्धवाली हैं ।
(क) कइ णं भंते! लेस्साओ दुब्भिगंधाओ पन्नताओ ? गोयमा ! तओ लेस्साओ दुभिगंधाओ पन्नत्ताओ, तं जहा - कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काऊलेम्सा ।
- पण ० प १७ । उ ४ । सू १२३६ । पृ० २६७ – ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू २२१ । पृ० २२० ( उत्तर केवल )
(ख) जह गोमडस्स गंधो, सुणगमडस्स व जहा अहिमडस्स | एतो वि अनंतगुणो, लेसाणं अप्पसत्थाणं ||
-- उत्त० अ ३४ | गा १६ । पृ० १०४२
कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, दुर्गन्धित द्रव्यवाली हैं । मृत गाय, मृत श्वान तथा मृत सर्प की जैसी दुर्गन्ध होती है उससे अनन्तगुणी दुर्गन्ध इन तीन अप्रशस्त लेश्याओं की होती है ।
१२२ पश्चात् की तीन लेश्याएँ सुगन्धवाली हैं ।
(क) कइ णं भंते! लेस्साओ सुब्भिगंधाओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! तओ लेस्साओ सुभिगंधाओ पन्नत्ताओ, तंजड़ा- तेऊलेस्सा, म्हलेस्सा, सुक्कलेस्सा |
- पण्ण० प १७ । उ ४ । सु १२४० । पृ० २६७ -ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू २२१ । पृ० २२० ( उत्तर केवल ) (ख) जह सुरभिकुसुमगंधो, गंधवासाण पिस्समाणाणं । एत्तो वि अनंतगुणो, पसत्यलेसाण तिन्हं पि ॥
- उत्त० अ ३४ । गा १७ । पृ० १०४६
तेजोलेश्या, पद्मलेश्या तथा शुक्ललेश्या सुगन्धित द्रव्यवाली हैं तथा इनकी सुगन्ध सुरभित पुष्पों तथा घिसे हुए सुगन्धित द्रव्यों से अनन्तगुणी है ।
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