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लेश्या-कोश करेइ तल्लेसेसु उववज्जइ, तं जहा-तेऊलेसेसु वा, पम्हलेसेसु वा, सुक्कलेसेसु वा।
-भग० श ३ । उ ४ । सू १७-१६ पृ० ४५६
जो जीव नारकियों में उत्पन्न होने योग्य है वह जीव जिस लेश्या के द्रव्यों को ग्रहण करके काल करता है उसी लेश्या में जाकर उत्पन्न होता है, यथाकृष्णलेश्या में अथवा नीललेश्या में अथवा कापोतलेश्या में। यावत् दण्डक के ज्योतिषी जीवों के पहले तक ऐसा ही कहना। अर्थात् जिसके जो लेश्या हो उसके वह लेश्या कहनी।
जो जीव ज्योतिषी देवों में उत्पन्न होने योग्य है वह जीव जिस लेश्या के द्रव्यों को ग्रहण करके काल करता है उसी लेश्या में जाकर उत्पन्न होता है ; अर्थात् तेजोलेश्या में । जो जीव वैमानिक देवों में उत्पन्न होने योग्य है वह जीव जिस लेश्या के द्रव्यों को ग्रहण करके काल करता है उसी लेश्या में जाकर उत्पन्न होता है; यथा--तेजोलेश्या में अथवा पद्मलेश्या में अथवा शुक्ललेश्या में, अर्थात् जिसके जो लेश्या हो उसके वह लेश्या कहनी ।
दण्डक के अन्तिम सूत्र को दिखाने के निमित्त पूर्वोक्त सूत्र ( जाव-जीवे णं भंते इत्यादि ) कहा गया है। टीकाकार का कथन है कि यदि ऐसा ही था तो फिर केवल वैमानिक का सूत्र ही कहना चाहिये था फिर ज्योतिषी तथा वैमानिक के सूत्र अलग-अलग क्यों कहे ? वैमानिक और ज्योतिषियों की लेश्या उत्तम होती है यह दिखाने के निमित्त ही दोनों के सूत्र अलग-अलग कहे गए हैं। अथवा ऐसा करने का कारण सूत्रों की विचित्र गति हो सकती है।
'५७.३ मरण की लेश्या से अतिक्रान्त करने पर
अणगारे णं भंते ! भावियप्पा चरमं देवावासं वीइक्कंते परमं देवावासं असंपत्ते एत्थ णं अंतरा कालं करेज्जा, तस्स णं भंते ! कहिं गइ कहिं उववाए पन्नत्ते ? गोयमा! जे से तत्थ परियस्सओ (परियम्सतो ) तल्लेसा देवावासा, तहिं तस्स गइ, तहिं तस्स उववाए पन्नत्ते । से य तत्थ गए विराहेज्जा, कम्मलेस्सामेव पडिवडइ, से य तत्थ गए णो विराहेज्जा, तामेव लेस्सं उवसंपज्जिताणं विहरइ । अणगारे णं भंते ! भावियप्पा चरमं असुरकुमारा वासं वीइक्कंते
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