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लेश्या-कोश '४६ १ भाव परावृत्ति से देव-नारकी में लेश्या
(क) भावपरावत्तिए पुण सुर नेरइयाणं पि छल्लेस्सा । भाव की परावृत्ति होने से देव और नारक के भी छः लेश्या होती है ।
-पण्ण० प १७ । उ ५ । सू ५४ की टीका में उद्धृत
(ख) इह य नारकाणामुत्तरत्र च देवानां द्रव्यलेश्या स्थितिरेवैवं चिन्त्यते, तद्भावलेश्यानां परिवर्तमानतयाऽन्यथाऽपि स्थितेः सम्भवात उक्त हि।
देवाण नारयाण य दव्वलेसा भवंति एयाओ। भावपरावत्तीए सुरणेइयाण छल्लेसा ॥
-उत्त० अ ३४ गा ४३ । बृहवृत्ति पृ० ६५६
सुर नारकी मांहे भाव छलेस्या।
-झीणी चर्चा ढाल १३ । गा ५६
देव और नरक में छओं भाव लेश्या होती है ।
'५ लेश्या और जीव '५१ लेश्या की अपेक्षा जीव के भेद '५१.१ जीवों के दो भेद
(क) अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा-सलेस्सा य अलेस्सा य, जहा असिद्धा सिद्धा, सव्व थोवा अलेस्सा सलेम्सा अणंतगुणा ।
-जीवा० प्रति ६ । सर्व जीव । सू २४५ । पृ० २५२ (ख) अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा x x x [ एवं सलेस्सा चेव अलेस्सा चेव xxx ] ।
-जीवा० प्रनि ह । सर्व जीव । सू २४५ । पृ० २५१
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