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लेश्या-कोश
१५१ णियकुराणं एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमति ? एवं एत्थं वि मूलादीया दस उद्देसगा निरवसेसं जहा आलुवग्गो।
-भग० श २३ । व ३ । पृ० ८१४
आय, काय, कुहुणा, कुन्दुरुक्क, उव्वेहलिय, सफा, सेज्जा, छत्रा, वंशानिका, कुमारी-इनके मूल यावत् बीज में तीन लेश्या तथा छब्बीस विकल्प होते हैं ।
१५.२७ पाठा आदि वनस्पतिकाय में ___ अह भंते ! पाढामियवालंकिमहुररसारायवल्लिपउमामोढरिदतिचंडीणं एएसि ण जे जीवा मूल० एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा आलुयवग्गसरिसा ।
-भग० श २३ । व ४ । पृ० ८१४ पाठा, मृगवालुकी, मधुररसा, राजवल्ली, पद्मा; मोढरी, दंती, चण्डीइनके मूल यावत् बीज में तीन लेश्या तथा छब्बीस विकल्प होते हैं । १५.२८ माषपर्णी आदि वनस्पतिकाय में
अह भंते ! मासपण्णीमुग्गपण्णीजीवगसरिसवकरेणुयकाओलिखीरकाकोलिभंगिणहिकिमिरासिभदमुच्छणंगलइपयुयकिंणापउयलपाढेहरेणुयालोहीणं-एएसि णं जे जीवा मूल० एवं एत्थ वि दस उद्देसगा निरवसेसं आलुयवग्गसरिसा।
-भग० श २३ । व ५ पृ० ८४४ मासपर्णी, मुद्गपर्णी, जीवक, सरसव, करेणुक, काकोली, क्षीरकाकोली, भंगी, णही, कुमिराशि, भद्रमुस्ता, लांगली, पउय, किण्णा-पउलय, पाढ; हरेणुका, लोही-इनके मूल यावत् बीज में तीन लेश्या हथा छब्बीस विकल्प होते हैं।
एवं एत्थ पंचसु वि वग्गेसु पन्नासं उहेसगा भाणियव्वा सव्वत्थ देवा न उववज्जति तिनि लेस्साओ। सेवं भंते- भंते ! त्ति ।
-भग० श २३ । पृ० ८४४ उपरोक्त ( १५-२४ से '१५.२८ तक ) साधारण वनस्पतिकाय के जीवों में तीन लेश्या होती हैं . क्योंकि इनमें देवता उत्पन्न नहीं होते हैं ।
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