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लेश्या - कोश
( उपरोक्त ) लेश्याओं की यह स्थिति नारकी की कही गई है ।
५४२ तिर्यच की लेश्या स्थिति
अंतोमुहुत्तमद्ध लेसाण ठिई जहिं जहिं जा उ । तिरियाणा नराणं वा वज्जित्ता केवलं लेसं ॥
- उत्त० अ ३४ । गा ४५ । पृ० १०४७
तिर्यंच में सर्व लेश्याओं की जघन्य तथा उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त की है ।
५४ ३ मनुष्य की लेश्या की स्थिति
क --- कृष्ण आदि प्रथम पाँच लेश्या की स्थिति
अंतोमुहुत्तमद्ध लेसाण ठिई जहिं जहिं जा उ । तिरियाणा नराणं वा वज्जित्ता केवलं लेसं ॥
मनुष्यों शुक्ललेश्या को छोड़कर अवशिष्ट सब लेश्याओं की जघन्य एवं उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है ।
ख
- शुक्ललेश्या की स्थिति
— उत्त० अ ३४ । गा ४५ । पृ० १०४७
मुहुत्तद्ध ं तु जहन्ना, उक्कोसा होइ पुव्वकोडीओ । नवहिं वरिसेहिं ऊणा, नायव्वा सुकलेसाए ॥
*५४४ देव की लेश्या स्थिति
शुक्ललेश्या की स्थिति - जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट नौ वर्ष न्यून एक करोड़ पूर्व की है ।
- उत्त० अ ३४ । गा ४६ । पृ० १०४७
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तेण परं वोच्छामि, लेसाण ठिई उ देवाणं । दस वाससहस्साइ, किण्हाए ठिई जहन्निया होइ || पलियम संखिज्जइमो, उक्कोसा होइ कहाए । जा कहा ठिई खलु, उक्कोसा साउ समयमब्भहिया || जहन्नेणं नीलाए, पलियम संखं च उक्कोसा | जानीलाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया ||
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