________________
१६०
लेश्या-कोश
हरिवास-रम्यकवास अकर्मभूमिज मनुष्य-मनुष्यणी में चार लेश्या होती है। (ग) देवकुरु-उत्तरकुरु अकर्मभूमिज मनुष्य में
देवकुरु - उत्तरकुरु - अकम्मभूमयमणुस्सा एवं चेव । एएसिं चेव मणुस्सीणं एवं चेव ।
-पण्ण० प १७ । उ ६ । सू १ । पृ० ४५१ देवकुरु-उत्तरकुरु अकर्मभूमिज मनुष्य में चार लेश्या होती है। इसी प्रकार मनुष्यणी में भी चार लेश्या होती है।
(घ) धातकीखण्ड और पुष्कर द्वीप के अकर्मभूमिज मनुष्य में
धायइखंडपुरिमद्धे वि एवं चेव, पच्छिमद्ध वि । एवं पुक्खरदीवे वि भाणियव्वं ।
-पण्ण० १७ । उ ६ । सू १ । पृ० ४५१ इसी प्रकार धातकीखण्ड के पूर्वार्द्ध तथा पश्चिमार्थ के हेमवय, हैरण्यवय, हरिवास, रम्यकवास, देवकुरु, उत्तरकुरु अकर्मभूमिज मनुष्य तथा मनुष्यणी में चार लेश्या होती है।
इसी प्रकार पुष्करवर द्वीप के पूर्वार्द्ध तथा पश्चिमा के हेमवय, हैरण्यवय; हरिवास, रम्यकवास, देवकुरु, उत्तरकुरु अकर्मभूमिज मनुष्य तथा मनुष्यणी में चार लेश्या होती है। २०.८ अन्तर्वीपज मनुष्य और मनुष्यणी में एवं अंतरदीवगमणुस्साणं, मणुस्सीण वि ।
-पण्ण० प १७ । उ ६ । सू १ । पृ० ४५१ इसी प्रकार अंतर्दीपज मनुष्य तथा मनुष्यणी में चार लेश्या होती है। २१ औधिक देव में (क) देवाणं पुच्छा। गोयमा ! छ एयाओ चेब ।
-पण्ण० प १७ । उ २ । सू १३ । पृ० ४५८ (ख) पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं छल्लेस्साओ पनत्ताओ, तं जहा–कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा । एवं मणुस्सदेवाणवि ।
-ठाण० स्था ६ । सू ५०४ । पृ० २७२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org