________________
१३२
लेश्या-कोश चउरिंदियाणं तिण्णि लेस्साओ पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं मणुस्साणं छल्लेस्साओ, जोइसियाणं एगा तेऊलेस्सा, वेमाणियाणं तिण्णि उवरिमलेस्साओ।
कृष्णलेशी नारकियों की एक वर्गणा होती है इसी प्रकार दण्डक में जिसके जितनी लेश्या होती है उतनी वर्गणा जानना ।
(३) एगा कण्हलेस्साणं भवसिद्धियाणं वग्गणा, एगा कण्हलेस्साणं अभवसिद्धियाणं वग्गणा, एवं छसुवि लेस्सासु दो दो पयाणि भाणियव्वाणि, एगा कण्हलेस्साणं भवसिद्धियाणं नेरइयाणं वग्गणा, एगा कण्हलेस्साणं अभवसिद्धियाणं रयाणं वग्गणा, एवं जस्स जइ लेस्साओ तस्स ततियाओ भाणियल्वाओ, जाव वेमाणियाणं ।
___कृष्णलेशी भवसिद्धिक जीवों की एक वर्गणा होती है तथा कृश्नलेशी अभवसिद्धिक जीवों की वर्गणा होती है इसी प्रकार छओं लेश्याओं में दो-दो पद कहना। कृष्णलेशी भवसिद्धिक नारक जीवों की एक वर्गणा, कृष्णलेशी अभवसिद्धिकों की एक वर्गणा तथा इसी प्रकार दण्डक में यावत् वैमानिक जीवों तक जिसके जितनी लेश्या हो उतनी भवसिद्धिक-अभवसिद्धिक वर्गणा कहना ।
(४) एगा कण्हलेस्साणं समदिट्टियाणं वग्गणा, एगा कण्हलेस्साणं मिच्छादिहियाणं वग्गणा, एगा कण्हलेस्साणं सम्मामिच्छ दिट्ठियाणं वग्गणा, एवं छसु वि लेस्सासु जाव वेमाणियाणं जेसिं जइ दिट्ठीओ।
कृष्णलेशी सम्यक दृष्टि जीवों की एक वर्गणा होती है, कृष्णलेशी मिथ्या दृष्टि जीवों की एक वर्गणा तथा कृष्णलेशी सम-मिथ्या दृष्टि जीवों की एक वर्गणा । इसी प्रकार छओं लेश्याओं में तथा दण्डक के जीवों में यावत् वैमानिक जीवों तक जिसके जितनी लेश्या तथा दृष्टि हो उतनी सम्यक दृष्टि, मिथ्या दृष्टि तथा सममिथ्या दृष्टि व लेश्या की अपेक्षा जीवों की दृष्टि वर्गणा कहना । ___ (५) एगा कण्हलेस्साणं कण्हपक्खियाणं वग्गणा, एगा कण्हलेस्साणं सुक्कपक्खियाणं वग्गणा, जाव वेमाणियाणं, जस्स जइ लेस्साओ, एए अट्ट चउवीसदण्डया।
-ठाण० स्था १ । सू १६१ से २१३ । पृ० ४६६-४६७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org