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लेश्या-कोश १५.१४ इक्षु आदि वनस्पतिकाय में
अह भंते ! उक्खु-उक्खु-वाडिय-वीरण-इकड-भमास-सुंबि-सरवेत्त-तिमिर-सयपोरग-नलाणं x x x एवं जहेव वसवग्गो तहेव, एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा, नवरं खंधुद्देसे देवो उववज्जति, चत्तारि लेस्साओ।
-भग० श २१ । व ५ । सू १८ । पृ० ८३८ __ इक्षु, इक्षुवाटिका, वीरण, इक्वडभमास-सूठ-शर-वेत्र-तिमिर-सयपोरग-नलइनके स्कंध बाद मूलादि में तीन लेश्या, २६ विकल्प तथा स्कंध में चार लेश्या तथा अस्सी विकल्प होते हैं । १५.१५ सेडिय आदि तृण विशेष वनस्पतिकाय में
अह भंते ! सेडिय-भंतिय कोंतिय-दब्भ-दब्भकुस-पव्वग पादइलअज्जुण-आसाढग-रोहियंस-सुय-वखीर-भुस-एरंड-कुरुकूद-करकर-सुंठविभंगु-महुरयण-थुरग-सिप्पिव-संकलितणाणं x x x एवं एत्थ वि दस उद्देसगा निरवसेसं जहेव वंसवग्गो।
-भग० श २१ । व ६ । पृ० ८३८ सेडिय, भंतिय (भंडिय), दर्भ, कोंतिय, दर्भकुश, पर्वक, पोदेइल (पोइदइल), अर्जुन ( अंजन ), आषाढक, रोहितक, समु, तवखीर, भुस, एरण्ड, कुरुकंद, करकर, सूठ, विभंग, मधुरयण ( मधुवयण ), थुरग, शिल्पिक, सुकंलितृण-इनके मूल यावत् बीज में तीन लेश्या तथा २६ विकल्प होते हैं। '१५-१६ अभ्ररू ह आदि वनस्पतिकाय में
अह भंते ! अब्भरुह-वायाण-हरितग-तंदुलेज्जग-तण-वत्थुल-पोरगमजारयाईविल्लि-पालक्क दगपिप्पलिय-दवि-सोत्थिय-सायमंडुक्किमूलग-सरिसव-अंविलसाग-जियंतगाणं x x x एवं एत्थ वि दस उद्देसगा जहेव वंसवग्गो।
-भग० श २१ । व ७ । पृ० ८३८ अभ्ररूह, वायण, हरितक, तांदलजो, तृण, वत्थुल, पोरक, मार्जारक, बिल्लि, ( चिल्लि ), पालक, दगपिप्पली, दवि ( दर्वी ), स्वस्तिक, शाकमंडुकी, मूलक,
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