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लेश्या-कोश ओसक्कइ वा उस्सक्कइ वा, से एतेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइनीललेस्सा काऊलेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुज्जो २ परिणमइ ।
-पण्ण० प १७ । उ ५ । सू १२५३ । पृ० ३००-१ उसी प्रकार नील लेश्या कापोत लेश्या में परिणत नहीं होती है ऐसा कहा जाता है क्योंकि ( नारकी और देवों की स्थित लेश्या में ) वह केवल आकार भाव-प्रतिबिम्ब भाव मात्र से कापोतत्व को प्राप्त होती है। '२० '३ कापोत लेश्या कदाचित् अन्य लेश्याओं में परिणत कहीं होती एवं काऊलेसा तेउलेसं पप्प ।
-पण्ण० प १७ । उ ५ । सू १२५४ । पृ० ३०१
जैसा कृष्ण-नीललेश्या का कहा उसी प्रकार कापोतलेश्या मात्र आकार भाव से प्रतिबिम्ब भाव से तेजोत्व को प्राप्त होती है, अतः कापोतलेश्या तेजोलेश्या में परिणत नहीं होती है ऐसा कहा जाता है।
२० ४ तेजोलेश्या कदाचित् अन्य लेश्याओं में परिणत नहीं होती ( एवं ) तेऊलेस्सा पम्हलेस्सं पप्प ।।
-पण्ण० प १७ । उ ५ । सू १२५४ पृ० ३०१ जैसा कृष्ण-नील लेश्या का कहा उसी प्रकार तेजोलेश्या मात्र आकार भाव से प्रतिबिम्ब भाव से पद्मत्व को प्राप्त होती है अतः तेजोलेश्या पद्मलेश्या में परिणत नहीं होती है ऐसा कहा जाता है । '२०१५ पालेश्या कदाचित् अन्य लेश्याओं में परिणत नहीं होती ( एवं ) पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सं पप्प ।
-पण्ण० प १७ । उ ५ । सू १२५४ । पृ० ३०१ जैसा कृष्ण-नीललेश्या का कहा उसी प्रकार पद्मलेश्या मात्र आकार भाव से प्रतिबिम्ब भाव से शुक्लत्व को प्राप्त होती है अतः पद्मलेश्या शुक्ललेश्या में परिणत नहीं होती है ऐसा कहा जाता है। ''२०.६ शुक्ललेश्या कदाचित् अन्य लेश्याओं में परिणत नहीं होती
से नूणं भंते ! सुक्कलेस्सा पम्हलेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए जाव परिणमइ ? हंता गोयमा! सुक्कलेस्सा तं चेव । से केण?णं भंते !
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