________________
१०८
लेश्या-कोश २५.३ तपोकर्म से तेजोलेश्या प्राप्ति का उपाय
कहण्णं भंते ! संखित्तविउलतेउलेस्से भवइ ? तए णं अहं गोयमा ! गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी-जेणं गोसाला! एगाए सणहाए कुम्मासपिडियाए एगेण य वियडासएणं छ8 छ?णं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उडढं बाहाओ पगिझिय पगिझिय जाव विहरइ । से णं अन्तो छण्हं मासाणं संखिविउलतेउलेस्से भवइ, तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एयम सम्मं विणएणं पडिसुणेइ ।
-भग० श १५ । सू० ६ । पृ० ७१५ संक्षिप्त-विपुल तेजोलेश्या किस प्रकार प्राप्त होती है ? नखसहित जली हुई उड़द की दाल के बाकले मुट्ठी भर तथा एक चुल्लू भर पानी पीकर जो निरन्तर छ?-छट्ट भक्त तप ऊर्व हाथ रखकर करता है, विहरता है उसको छः मास के अन्त में संक्षिप्त-विपुल तेजोलेश्या की प्राप्त होती है।
संक्षिप्त-विपुल का भाव टीकाकार अभयदेवसूरि ने इस प्रकार वर्णन किया है। संक्षिप्त-अप्रयोगकाल में संक्षिप्त ।
विपुल-प्रयोगकाल में विस्तीर्ण । '२५.४ तपोलब्धि जन्य तेजोलेश्या में घात-भस्म करने की शक्ति ___ जावइए णं अजो! गोसालेणं मंलिपुत्तेणं ममं बहाए सरीरगंसि तेये निसह, से णं अलाहि पजत्ते सोलसण्हं जणवयाणं, तं जहाअंगाणं, वंगाणं, मगहाणं, मलयाणं, मालवगाणं, अच्छाणं, वच्छाणं, कोच्छाणं, पाढाणं, लाढाणं, वजीणं, मोलीणं, कासीणं, कोसलाणं, अवाहाणं, संभुत्तराणं, घायाए, वहाए, उच्छादणयाए, भासीकरणयाए।
-भग० श १५ । सू० २२१ । पृ० ६८५ भगवान महावीर ने श्रमण निग्नन्थों को बुलाकर कहा-हे आर्यों ! मंखलिपुत्र गोशालक से मुझे वध करने के लिये अपने शरीर से जो तेजोलेश्या निकाली थी वह अंग, बंगादि १६ देशों का घात करने, वध करने, उच्छेद करने तथा भस्म करने में समर्थ थी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org