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लेश्या-कोश
की तेजोलेश्या का अतिक्रम करता है ; तीन मास की पर्यायवाला हो तो असुरकुमार देवों की; चार मास की पर्यायवाला ग्रहगण, नक्षत्र एवं तारागणरूप ज्योतिष्क देवों की ; पांच मास की पर्यायवाला ज्योति कों के इन्द्र, ज्योतिष्कों के राजा ( चन्द्र-सूर्य ) की ; छः मास की पर्यायवाला सौधर्म और ईशानवासी देवों की सात मास की पर्यायवाला सनत्कुमार और माहेन्द्र देवों की ; आठ मास की पर्यायवाला ब्रह्मलोक और लांतक देवों को ; नव मास की पर्यायवाला महाशुक्र और सहस्रार देवों की ; दस मास की पर्यायवाला आनत, प्राणत, आरण
और अच्यूत देवों की; ग्यारह मास की पर्यायवाला येयक देवों की तथा बारह मास की दीक्षा की पर्यायवाला पापरहित रूप विहरनेवाला श्रमण निग्रन्थ अनुत्तरोपापातिक देवों की तेजोलेश्या को अतिक्रम करता है।
२६ द्रव्य लेया और दुर्गति-सुगति (क) किण्हा नीला काऊ, तिन्नि वि एयाओ अहम्मलेसाओ।
एयाहि तिहि वि जीवो, दुग्गइ उववजई बहुसो॥ तेऊ पम्हा सुक्का, तिन्नि वि एयाओ धम्मलेसाओ। एयाहि तिहि वि जीवो, सुग्गइ उववज्जई बहुसो ।
-उत्त० अ ३४ । गा ५६-५७ । पृ० १०४८
(ख) [ तओ लेस्साओ x x x पन्नत्ताओ तं जहा-कण्हलेसा, नीललेस्सा, काऊलेसा, तओ लेस्साओ x x x पन्नत्ताओ तं जहा-तेऊ, पम्हा, सुक्कलेस्सा ] एवं ( तिन्नि ) दुग्गइगामिणीओ (तिनि) सुग्गइगामिणीओ।...
-ठाण स्था ३ । उ ४ । सू २२ । पृ० २२०
(ग) तओ दुग्गइगामियाओ ( कण्ह, नील, काऊ ) तओ सुग्गइगामियाओ ( तेऊ, पम्ह, सुक्कलेस्साओ)।
-पण्ण० प १७ । उ ४ । सू १२४१ । पृ० २६७ ... कृष्ण, नील तथा कापोत लेश्याए दुर्गति में जाने की हेतु हैं तथा तेजो, पद्म और शुक्ल लेश्याएं सुगति में जाने की हेतु हैं। .... .
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