________________
लेश्या-कोश
यहाँ लेश्या शब्द से उपरोक्त चन्द्रमादि से निसर्गत ज्योति विशेषादि को उपलक्ष किया है, ऐसा मालूम पड़ता है ।
११८
*३१*२ सरूपी सकर्मलेश्या का अवभास, उद्योत, तप्त एवं प्रभास करना
अत्थि णं भंते! सरूवी सकम्मलेन्सा पोग्गला ओभासेंति, उज्जो - एन्ति, तवेन्ति, प्रभासेंति ? हंता अत्थि ?
कयरे णं भंते! सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गल ओभासेंति, जाव पभासेंति ? गोयमा ! जाओ इमाओ चन्दिम-सूरियाणं देवाणं विमाणेहिंतो लेस्साओ बहिया अभिनिस्सडाओ ताओ ओभासंति ( जाव ) पभासेंति, एवं एएणं गोयमा ! ते सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासेंति, उज्जोएंति, तवेंति, पभासेंति ।
- भग० अ १४ । उ । सू ६४६ । पृ० १२४-१२५
सरूपी सकर्मलेश्या के पुद्गल अवभास, उद्योत, तप्त तथा प्रभास करते हैं यथा - चन्द्र तथा सूर्यदेवों के विमानों से बाहर निकली लेश्या अवभासित, उद्योतित, तप्त, प्रभासित होती है |
टीकाकार ने कहा कि चन्द्रादि विमान से निकले हुए प्रकाश के पुद्गलों को उपचार से सकर्मलेश्या कहा गया है। क्योंकि उनके विमान के पुद्गल सचित्त पृथ्वीकायिक है और वे पृथ्वीकायिक जीव सकर्मलेशी हैं अतः उनसे निकले पुद्गलों को उपचार से सकर्मलेश्या पुद्गल कहा गया है । अन्यथा वे अजीव नोकर्म द्रव्यश्या के पुद्गल है ।
* ३१३ सूर्य की लेश्या का शुभत्व
किमिदं मंते ! सूरिए ( अचिरुग्गयं बालसूरियं जासुमणाकुसुमपुंज पकासं लोहितगं ) ; किमिदं भंते! सूरियस्स अट्ठ े ? गोयमा ! सुभे सूरिए, सुभे सुरियस्स अट्ठ े । किंमिदं भंते! सुरिए; किमिदं भंते! सूरियस्स पभा ? एवं चेव, एवं छाया, एवं लेस्सा |
— भग० अ १४ । उ । सू ६५० । पृ० १३३ से १३५
उगते हुए बाल सूर्य की लेश्या शुभ होती है । टीकाकार ने यहाँ लेश्या का अर्थ 'वर्ण' लिया है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org