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लेश्या-कोश
१०७ इससे यह स्पष्ट होता है कि तपोलब्धि से प्राप्त तेजोलेश्या प्रायोगिक द्रव्यलेश्या-पौद्गलिक है । यह छभेदी लेश्या की तेजोलेश्या से भिन्न है ऐसा प्रतीत होता है।
·२५.२ यह तेजोलेश्या दो प्रकार की होती है, यथा-(१) सीओसिणतेऊलेस्सा, (२) सीयलिय तेउलेस्सा।
(१) शीतोष्ण तेजोलेश्या, (२) शीतल तेजोलेश्या । इनका उदाहरण भगवान महावीर के जीवन में मिलता है।
तए णं अहं गोयमा ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अणुकंपणट्ठयाए वेसियायणस्स बालतवस्सिसस्स सीओसिणतेउलेस्सा ( तेय ) पडिसाहरणट्ठयाए एत्थ णं अन्तरा अहं सीयलियं तेउलेस्सं निसिरामि, जाए सा ममं सीलियाए तेउलेम्साए वेसियायणस्स बालतवस्सिसस्स सीओसिणा ( सा उसिणा ) तेउलेस्सा पडिहया, तए णं से वेसियायणे बालतवस्सी ममं सीयलियाए तेउलेस्साए सीओसिणं तेउलेस्सं पडिहयं जाणित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा छविच्छेदं वा अकीरमाणं पासित्ता सीओसिणं तेउलेस्सं पडिसाहरइ। (सीओसिणं पाठान्तर उसिणं )
-भग० श १५ । सू० ६५ । पृ० ६६७
तब, हे गौतम ! मंखलिपुत्र गोशालक पर अनुकम्पा लाकर वैश्यायन बालतपस्वी की ( निक्षिप्त ) तेजोलेश्या का प्रतिसंहार करने के लिये मैंने शीत तेजोलेश्या बाहर निकाली और मेरी शीत तेजोलेश्या ने वैश्यायन बालतपस्वी की उष्ण तेजोलेश्या का प्रतिघात किया। तत्पश्चात् वैश्यायन बालतपस्वी ने मेरी शीत तेजोलेश्या से अपनी उष्ण तेजोलेश्या का प्रतिघात हुआ समझकर तथा मंखलीपुत्र गोशालक के शरीर को थोड़ी या अधिक किसी प्रकार की पीड़ा या उसके अवयव का छविच्छेद न हुआ जानकर अपनी उष्ण तेजोलेश्या को वापस खींच लिया।
यहाँ यह बात नोट करने की है कि उष्ण तेजोलेश्या को फेंककर वापस खींचा भी जा सकता है।
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