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लेश्या-कोश
शुक्ललेश्या कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पमलेश्या के द्रव्यों का संयोग पाकर उनके रूप, वणे, गंध, रस और स्पर्श रूप में परिणत होती है ।
•२० लेश्याओं का परस्पर में अपी णमन '२०१ कृष्ण लेश्या कदाचित् अन्य लेश्याओं में परिणत नहीं होती
से नूणं भंते ! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए जाव णो ताफासत्ताए भुज्जो २ परिणमइ ? हंता गोयमा ! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए, जो तावनत्ताए णो तागंधत्ताए, णो तारसत्ताए णो ताफासत्ताए भुज्जो २ परिणमइ । से केणढणं भंते ! एवं वुच्चइ ? गोयमा ! आगारभावमायाए वा से सिया, पलिभागभावमायाए वा से सिया, कण्हलेस्सा णं सा, णो खलु नीललेस्सा, तत्थ गया
ओसक्कइ उस्सक्कइ वा, से तेण?णं गोयमा! एवं बुच्चइ-'कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुज्जो २ परिणमइ ।
--पण्ण० प १७ । उ ५ । सू १२५२ पृ० ३००
कृष्ण लेश्या नील लेश्या के द्रव्यों का संयोग पाकर उसके रूप, वर्ण, गंध, रस तथा स्पर्श रूप में कदाचित् नहीं परिणत होती है ऐसा कहा जाता है, क्योंकि उस समय वह केवल आकार भाव मात्र से या प्रतिबिम्ब मात्र से नील लेश्या है। वहां कृष्ण लेश्या नील लेश्या नहीं है। वहां कृष्ण लेश्या स्वस्वरूप में रहती हुई भी छाया मात्र से--प्रतिबिम्ब मात्र से नील लेश्या यानि सामान्य विशुद्धिअविशुद्धि में उत्सर्पण-अवसर्पण करती है। यह अवस्था नारकी और देवों की स्थित लेश्या में होती है।
२०.२ नील लेश्या कदाचित् अन्य लेश्याओं में परिणत नहीं होती
से नूणं भंते ! नीललेस्सा काऊलेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुज्जो २ परिणमइ ? हंता गोयमा ! नीललेस्सा काऊलेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुजो २ परिणमइ ? सिया से केण8 णं भंते ! एवं वुच्चइ-'नीललेस्सा काऊलेसं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुजो भुजो परिणमइ ? गोयमा ! आगारभावमायाए वा सिया, पलिभागभावमायाए वा नीललेग्सा णं सा, णो खलु सा काऊलेस्सा, तत्थगया
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