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लेश्या-कोश
१०१ २०.७ लेश्या आत्मा सिवाय अन्यत्र परिणत नहीं होती है
अह भंते ! पाणाइवाए मुसावाए जाव मिच्छादसणसल्ले, पाणाइवायवेरमणे जाव मिच्छादंसणसल्लविवेगे, उत्पत्तिया जाव पारिणामिया, उग्गहे जाव धारणा, उहाणे-कम्मे-बले-बीरिए-पुरिसकारपरकमे, नेरइयत्ते असुरकुमारत्ते जाव वेमाणियत्ते, णाणावरणिज्जे जाव अन्तराइए, कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा, सम्मदिट्ठी-मिच्छादिट्ठी - सम्ममिच्छादिही, चक्खुदंसणे - अचक्खुदंसणे - ओहीदंसणेकेवलदसणे, आभिणिबोहियणाणे जाव विभंगणाणे, आहारसन्नाभयसन्ना-मैथुनसन्न-परिग्गहसन्ना, ओरालियसरीरे वेउव्वियसरीरे आहारगसरीरे तेयएसरीरे कम्मएसरीरे, मणजोगे-वइजोगे-कायजोगे, सागारोवओगे अणागारोवओगे जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वे ते णण्णत्थ आयाए परिणमंति ? हंता गोयमा! पाणाइवाए जाव सव्वे ते णण्णत्थ आयाए परिणमंति।
-भग० श २० । उ ३ । सू१ । पृ० ७६२ प्राणातिपातादि १८ पाप, प्राणातिपातादि १८ पापों का विरमण, औत्पात्तिकी आदि ४ बुद्धि, अवग्रह यावत् धारणा, उत्थान, कर्म, बल; वीर्य, पुरुषाकारपराक्रम, नारकादि २४ दण्डक-अवस्था, ज्ञानावरणीय आदि कर्म, कृष्णादि छह लेश्या, तीन दृष्टि, चार दर्शन, पांच ज्ञान, तीन अज्ञान, चार संज्ञा, पांच शरीर, तीन योग, साकार उपयोग, अनाकार उपयोग इत्यादि अन्य इसी प्रकार के सर्व आत्मा के सिवाय अन्यत्र परिणत नहीं होते हैं। यह पाठ द्रव्य और भाव दोनों लेश्याओं में लागू होना चाहिये।
२१ द्रव्य लेश्या और स्थान
(क) केवइया णं भंते ! कण्हलेस्सा ठाणा पन्नत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा कण्हलेस्सा ठाणा पन्नत्ता एवं जाव सुक्कलेस्सा।
-पण्ण ० प १७ । उ ४ । सू १२४६ । पृ० २६८ (ख) असंखिज्जाणोसप्पिणीण, उस्स प्पिणीण जे समया । संखाईया लोगा, लेसाण हवन्ति ठाणाई॥
-उत्त० अ ३४ । गा ३३ । पृ० १०४७
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