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*२२५ पद्मलेश्या की स्थिति
मुहुत्तद्ध तु जहन्ना, दसउदही होइ मुहुत्तमब्भहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा पहलेसाए ॥
लेश्या - कोश
पाठान्तर - दस होंति य सागरा मुहुत्तहिया ।
*२२*६ शुक्ललेश्या की स्थिति
- उत्त० अ ३४ । गा ३८ | पृ० १०४७
पद्मलेश्या की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक दस सागरोपम की होती है ।
मुहुत्तद्ध तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा सुक्कलेसाए ॥
- द्वितीय चरण
- उत्त० अ ३४ । गा ३६ । पृ० १०४७
शुक्ललेश्या की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक तैंतीस सागरोपम की होती है ।
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एसा खलुं लेसाणं, ओहेण ठिई ( उ ) वणिया होई ।
- उत्त० अ ३४ । गा ४०
इस प्रकार औधिक ( सामान्यतः ) लेश्या की स्थिति कही है ।
पूर्वार्ध | पृ० १०४७
समुच्चय गाथा
कालो छल्लेस्साणं णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । अंतोमुहुत्तभवरं एवं जीवं पडुच्च हवे ॥ ५५० || अवहीणं तेत्तीसं सत्तर सत्तेव होंति दो चेव । अट्ठारस तेत्तीसा उक्कस्सा होंति
आदिरेया || ५५१ ||
—गोजी ०
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० गाथा ५५०-५५१
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