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________________ १०४ *२२५ पद्मलेश्या की स्थिति मुहुत्तद्ध तु जहन्ना, दसउदही होइ मुहुत्तमब्भहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा पहलेसाए ॥ लेश्या - कोश पाठान्तर - दस होंति य सागरा मुहुत्तहिया । *२२*६ शुक्ललेश्या की स्थिति - उत्त० अ ३४ । गा ३८ | पृ० १०४७ पद्मलेश्या की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक दस सागरोपम की होती है । मुहुत्तद्ध तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा सुक्कलेसाए ॥ - द्वितीय चरण - उत्त० अ ३४ । गा ३६ । पृ० १०४७ शुक्ललेश्या की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक तैंतीस सागरोपम की होती है । Jain Education International एसा खलुं लेसाणं, ओहेण ठिई ( उ ) वणिया होई । - उत्त० अ ३४ । गा ४० इस प्रकार औधिक ( सामान्यतः ) लेश्या की स्थिति कही है । पूर्वार्ध | पृ० १०४७ समुच्चय गाथा कालो छल्लेस्साणं णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । अंतोमुहुत्तभवरं एवं जीवं पडुच्च हवे ॥ ५५० || अवहीणं तेत्तीसं सत्तर सत्तेव होंति दो चेव । अट्ठारस तेत्तीसा उक्कस्सा होंति आदिरेया || ५५१ || —गोजी ० For Private & Personal Use Only ० गाथा ५५०-५५१ www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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